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________________ भट्टारक रत्नकीति एवं कुमुदचन्द्र : व्यक्तित्व एवं कृतित्व YE लेकिन जब उसे वास्तविक स्थिति का वोध होता है तो वह नेमि के विरह में तड़पने लगती है और एक रात्रि के सहवास के लिये ही उनसे प्रार्थना करने लगती है। वह कहती है : प्रातः होने पर चाहे वे दीक्षा स्वीकार करलें लेकिन एक रात्रि को कम से कम उपके साथ व्यतीत करने पर वह अपने जीवन को धन्य समझ लेगी। नेम तुम प्राया धरिय धर एक रयनि रही पात पियारे बोहोरी चारित धरे ।नेमा और जब नेमि राजुन्य को बार बार पुकार पर भी नहीं पाते हैं तो राजून पी रुठने का बहाना करती है क्योंकि पता नहीं रुठने से ही नेमि पा जावे इसलिये बह नेमि के पास अपना सन्देश भेजता है कि न वह हाथ में मेहन्दी मडेगी और मंदों में नालल डालेग' । बद गिर का ग्रनकार नहीं करेगी पोर न मोतियों मे अपनी मांग को भरेगी। उसे किसी से भी बोलना अच्छा नहीं लगता । वह तो नेमि के विरह में हो तहाती रहेगी और उनकी दासी बनकर रहना चाहेगी। न हाथे मंडन कर पाजरा नेन म. होउ रे वेरागन नेम की चेरी। सीस न मांगन देउ' मांग मोती न लेउ । अब पोर हूं तेरे गुगनी चेरी । नेमि के विरह में राजुल पागल हो जाती है इसी लिये कभी वह अपनी सजनी गे पूछती है तो कभी मन्द्रमा से बात करने लगती है। कभी वह कामदेव को उल्हाना देती है तो कभी यह जनघर से गर्जना नहीं करने की प्रार्थना करती है। बड़ा दर्द भरा है कबि के गीत में। राजुल के हृदयगत भावों को उभाड़ो में कवि पूर्णत: सफल हुअा है । रानो मेरी भयनी धन्य या रपनी रे । पीयु घर आने तो जीव सुख पावे रे ।। मुनि र विधाता चन्द संतापी रे विरहनी बाध के साक्षेत्र हुना पापी है। सुन रे मनभध बत्तिया एका भुश रे । नेमि राजुल के अतिरिक्त भट्टारक रीति ने भगवान राम के स्तवन के रूप में पद्म लिखे हैं। कवि ने राम को जिस रूप में स्तुति की है उसमें उसने
SR No.090103
Book TitleBhattarak Ratnakirti Evam Kumudchandra Vyaktitva Evam Kirtitva Parichay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal
PublisherMahavir Granth Academy Jaipur
Publication Year
Total Pages269
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth, Biography, & Story
File Size4 MB
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