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भट्टारक रस्नकौति एवं कुमुदचन्द्र : व्यक्तित्व एवं कृतित्व
ध्यान मूल मनि जाणि प्राणि अंतरि हरावज । प्रातम तत्त अनुप रूप तसु ततषिण पावउ । इम कहद हीरानन्द संधपति अमल अटल इह ध्यान थिरि।
सुह सुरति सहित मन मइ घरउ भुगति मुगति दायक पवर ।।१।। प्रतिम पद्य...
मंगल करउ जिन पास पास पुरण कलि सुरतर । मंगल कर.उ जिन पास दाम जाके सब सुर नर । मंगल करउ जिन पास जास पय सेबई सुरपति मंगल करउ जिन पास तास पय पूजइ दिनपति मुनिराज कहई मंगल करत, जिन सपरिवार श्री कान्ह सुख
बावन बरस बहु फल करहु संघपति हीरानंद तुव ॥५७।। ४३. हम विजय
हेमविजय प्राचार्य हीरविजयसूरि के प्रशिष्य एवं विजय सेनसूरि के शिष्य थे। सबत् १६३९ में हीरविजयसुरी अकबर द्वारा ग्रामंत्रित किये गये थे। इसी तरह विजयतेन मूरि भी सम्राट अकबर द्वारा ग्रामवित थे । इस तरह हेमविजय को अच्छी गुरु परम्परा मिली थी। हेमविजयगुरि हिन्दी के भी अच्छे विद्वान थे । इनके द्वारा निर्मित कितने ही पद मिलते हैं इनमें भी नेमिनाय के पद उल्लेखनीय है एक पद देखिये--
कहि राजभती गुमती सखियान कू एक जिनेक खरी रहुरे । सखिरी सगिरि गुरी मही वाहि करति बहत इसे निहरे। अबही तबही कवही जबही यदुराय जाय इसी कहुरे ।
मुनि हेम के साहिब नेमजी हो, अव तरेग्न ते तुम्ह यू बहुरे । ४४, पवमराज
"अभयकुमार प्रवन्ध' पदम राज कृत हिन्दी काव्य है जिसमें अभयकुमार के जीवन पर प्रकाश डाला गया है। पदमराज खरतरगच्छ के प्राचार्य जिनहंस के प्रशिष्य एवं पुण्यसागर के शिष्य थे। जैसलमेर नगर में इसकी रचना समाप्त हुई थी। प्रबन्ध का रचना काल संवत १६५० है । प्रबन्ध का अन्तिम पद्म देखिये---
संवत सोलहसइ गंवामि जमलमेरु नगर उलासि । खरतरगच्छ नायक जिन हंस तस्य सीस गुणवंत संस | श्री पुण्यसागर पाठक सीस, पदमराज पभणइ सुजगीस । जुग प्रधान जि चन्द मुणिदं विजयभान निरुपम आनन्द | भाइ गुण्इ से त्ररित महंत, रिद्धि सिद्धि सुख ते पामन्ति ।