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________________ सहजकीगि उल्लेखनीय है | राजस्थान इनका प्रमुख कार्यक्षेत्र माना जाता है। इनके द्वारा निवड रचनाओं में प्रीति सीसी, शत्रुजय, महात्म्बरास, सुदर्शन थेष्ठिरास, जिनराज सूरि गीत, जैसलमेर चत्य प्रवाडी, कलावती रास (१६६७), त्मसन छत्तीसी (१६६८), देवराज बच्छराज चौपई (१६७२), अनेत्र शास्त्र समुच्चय, पाश्र्वनाय महात्म्य का..गा र माता नाम लेखनीय हैं। सहजक्रीति को कितनी ही रचनायें दिगम्बर शास्त्र भंडारों में भी उपलब्ध होती है जिनमें चउबीस जिनमगधर नर्णन, पार्वभजन बीस तीर्थ कर स्तुति आदि के नाम उल्लेखनीय हैं। सहज कीति का निश्चित गमय तो मालूम नही हो सका लेकिन इनकी अधिकांश रचनायें १७वीं शताब्दी के तृतीय चरण की प्राप्त होती हैं । कवि की भाषा का एक उदाहरण निम्न प्रकार है-- केवल कमलाकर सुर, कोमल वचन विलास । कषियण कमल दिवाकर, पणमिय 'फनविधि पास । सुर नर किद्धर वर भमर, सुन चरण' कंज जास । सरल वचन कर सरसती, नमीयइ मोहाग वास । जासु पसायद कवि लहइ, कधिजन मई जस वास । हंस गमणि सा भारती, देश प्रभू वचन विलास ।। -सुदर्शन श्रेष्ठिरास ४२. हीरानन्द मुकीम हीरानन्द मुकीम प्रागरा के धनाढ्य श्रावक थे। शाहजादा सलीम से उनका विशेष सम्बन्ध था । ये जौहरी थे । यात्रा संघ निकालने में इन्हें विशेष रुचि थी। कविवर बनारसीदास ने भी अपने अर्द्ध कथानक में इनके सम्मेद शिखर यात्रा संघ का उल्लेख किया है। श्री अगरचन्द नाहटा के अनुसार 'वीर विजय सम्मेद शिखर चत्य परिपाटी" में यात्रा संघों का वर्णन दिया हुआ है। जिसमें साह हीरानन्द के संघ का भी वर्णन अाया है। संघ में हाथी, घोड़े, रथ, पंदल और तुमकदार भी थे। संघ का स्थान स्थान पर स्वागत होता था। हीरानन्द स्वयं कवि भी थे। इनके द्वारा लिखी हुई अध्यात्म बावनी" हिन्दी की एक अच्छी कृति मानी जाती है। बावनी की रचना संवत् १६६८ आषाढ सुदी ५ है बावनी का प्रथम एवं अन्तिम पद्म निम्न प्रकार है ॐकार सरु पुरुष ईह अलग अगोचर अंतरज्ञान बिचारि पार पावई नहि को नर
SR No.090103
Book TitleBhattarak Ratnakirti Evam Kumudchandra Vyaktitva Evam Kirtitva Parichay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal
PublisherMahavir Granth Academy Jaipur
Publication Year
Total Pages269
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth, Biography, & Story
File Size4 MB
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