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भट्टारक रत्नकीति एवं कुमुदचन्द्र : व्यत्तित्व एवं कृतित्व
इनकी कृतियों में गुणत्रावती, भजन छतीसी, चौबीम जिन सनया, मन प्रशंसा दोहा, एवं वैद्रा विरहिणी प्रबन्ध के नाम उल्लेखनीय है। इनको ववितानों में सरसता एव सरनता है तथा पाठक को अाकर्षण करने की शक्ति है । भजन छत्तीसी का एक पद्य देखिये
प्रीति आय परजले श्रीत अरा पर जाले प्रीति गोत्र गालने प्रीति सुध वंश बिटाले । प्रीति काज घर नारि लन्द दीर छोड़े। प्रीति लाज परिहर प्रीति पर बंद पाडे । धन घरं देत दुग्न अंग गं, अभाव भर ल अजरो जर उदेराज का सुरिश ग्रातमा इमी नीति करे.!
३९. श्रीसार
श्रीसार खतरगच्छीय अमर्कीति भागबा के भनी रत्नहर्ष के शिष्य थे । ये हिन्दी के अच्छे कनि एवं सफल गा लेखक थे । इनवा ग़मय १७वीं पाशाब्दी का अन्तिम चरण है। अब तक अपनी तीग से भी अधिक कृतिगां प्राप्त हो चुकी हैं। कवि की और भी रचनामों की खोज अावश्यक है ।
४०. गरिण महानन्द
गरिण महानन्द के गुरु का नाम विवाह था जो तपागच्छ शाखा के हीरविजयसूरी की परम्परा से सम्बन्धित थे। इनकी एकमात्र रचना अंजना सुन्दरी रास प्राप्त हुई है जिसे कवि ने संवत् १६६१ में गेयपुर नगर में समाप्त की थी। इसकी एक पाण्डुलिपि जन सिवान्त भजन बारा में सहित है । एक वर्णन बखिये जिसमें अंजना सपियों को साथ खेलने का वर्णन किया गया है
फूलिय वनह बापालीय वालीय सरई र टबोल' । कारि बुकुम रग रोलीय घोलिय शाकमहोल ।। खेलइ खलं वडा क्सई, पोकली महीयर सात । अंजना सुन्दरी सुन्दरी मंजरी गुही करी ठान ॥५४।।
४१. सहजकर्कोति
राजकीति राजस्थानी भाषा के कवि थे। उनका मांगानेर निवास स्थान था तथा खरतरगच्छ की क्षेम शाखा के साधु थे। भाचावं हेमनन्दन के शिष्य थे। इनकी गुरु परम्परा में जिनसागर, रतासागर, रत्नहर्ता एवं हेमनन्दन के नाम