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समयसुन्दर
ये राजस्थानी भाषा के कवि कहलाते हैं। अब तक उनकी दस रचनायें प्राप्त हो चुकी हैं जिनके नाम निम्न प्रकार हैं
१. सम्यकत्वकौमुदी (१६२४) २. सिंहासन बत्तीसी (१६३६) ३. कुमति विध्वंसन चौपई (१६१७) ४. अाराधना चौपाई (१६१३} ५. अठारह नाता (१६१६) ६. रतनचूड चीपई ७. मोती सानिमा गंवाद .. रियाली E. मुनिपति चरित्र चौपई (१६१८) १०, सौलह स्वप्न सज्ञाय (१६२२)
३३. समयसुन्दर
समयसुन्दर का जन्म सांचौर में हुआ था। इनका जन्म संवत् १६१० के लगभग माना जाता है। डा. माहेश्वरी ने इसे सं० १६२० का माना है। इनकी माता का नाम लीना था । युवावस्था में उन्होंने दीक्षा ग्रहण पारली और फिर काव्य, चरित, पुराण, व्याकरण छन्द, ज्योतिष आदि विषयक साहित्य का पहिले अध्ययन किया और फिर विविध विषयों पर रचनायें लिखी। संवत् १६४१ से आपने लिखना प्रारम्भ किया और संवत् १७०० तक लिखते ही रहे । इस दीर्घकाल में इन्होंने छोटी-बड़ी संकड़ों ही कृतियाँ लिखी थीं। समयसुन्दर राजस्थानी साहित्य के अभूतपूर्व विद्वान् थे, जिनकी की कहावतों में भी प्रशंसा वणित है ।
"राजा ना ददते सौख्यम्" इन आठ अक्षरा के नाक्य के आपने १० लाख से भी अधिक अर्थ करके सम्राट अकबर और समस्त सभा को प्राभयं चकित कर दिया था। "सीताराम चौपाई" नामक राजस्थानी भाषा में निबद्ध एक सुन्दर काव्य है । समयसुन्दर कुसुमांजलि में आपकी ५६३ रचनायें प्रकाशित हो चुकी है। समवप्रद्युमन चौपाई, मृगावती रास (१६६८), प्रियमेलक रा (१६७२), शत्रुज य रास, स्यूलिभद्र रास आदि रचनाओं के नाम उल्लेखनीय है।
३४. जिनराजमूरि
ये युग प्रधान जिनचन्द्र सूरि के प्रशिष्य थे। ये भी राजस्थानी भाषा में लिखने वाले कवि थे। इनकी शालिभद्र चौपई बहुत ही लोकप्रिय कृति है। "जिन
राजसूरी कृति संग्रह" में इनकी सभी रचनायें प्रकाश में पा चुकी हैं। नैषधकाच्य पर इन्होंने ३३००० श्लोक प्रमाण संस्कृत टीका की थी। जिनराजसूरि ने संवत १६८६ में प्रागरा में बादशाह शाहजहाँ से भेंट की थी।