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________________ भट्टारक रत्नकोति एवं कुमुदचन्द्र : व्यक्तित्व एवं कृतित्व ३५. बामो वे वाचक उदयसागर के शिष्य थे। इनका पूरा नाम दयासागर था। सं० १६७१ में इन्होंने जालौर में "मदन नारिंद चौपई" की रचना समाप्त की थी। यह हिन्दी भाषा का एक सुन्दर प्रेम काव्य है। इस रचना के मध्य में रति सुन्दरी ने जो गुप्त लेख अपने प्रियतमा को भेजा था वह विशेष रूप से उल्लेखनीय है । इसका एक पद्य निम्न प्रकार है विरह आगि उपजी अधिक महनिस दहे सरीर । साहित देहुँ पसाऊ करि, दरसन रूपी नीर ।। ३६. कुशललाम कुशल लाभ राजस्थानी भाषा के उल्लेखनीय कवि थे। "ढोलामारू चौपई" प्रापकी बहुत ही प्रसिद्ध कृति मानी जाती है। इन्होंने "डोलामार का दूहा" के बीच-बीच में अपनी चौपाइयां मिलाकर प्रवन्धात्मकता उत्पन्न करने का प्रयास किया था। कुशल लाभ की चौपाइयों में निरह रग में कोई बाधात नहीं पहुंचा है अपितु कथा के एक सूत्र में बंध जाने से प्रबन्ध काव्य का आनंद आया है। डा० हजारीप्रसाद द्विवेदी ने भी कुशनलाभ की रचना कौशल को प्रशंसा की है। कुशललाभ में कवित्व शक्ति गजब । था। तीनों ही रसों में उन्होंने सकस काक्ष्यों का निर्माण किया और साहित्य जगत में गहरी लोकप्रियता प्राप्त की। माधवानल चौगाई इनकी श्रृंगार रस प्रधान रचना है। श्री पूज्यवाहण गीत, स्थलिभद्र, छत्तीसी, तेजग़ार रास, स्तम्भन पार्श्वनाथ स्तवन, गौडी पार्श्वनाथ स्तवन और नवकारहंद इनकी भक्ति परक रचनायें हैं । स्थूलिभद्र छत्तीसी का प्रथम पद्म देखिये-- सारद शरदचन्द्र कर निर्मल, ताके चरण कमल चित लाइक सुणत संतोष होई श्रवण कु, नागर चतुर सुनइ नित भाइकि कुशललाभ मुनि आनंद भरि, सुगुरुप्रसाद परम सुख पाइकि करिह थूलभद्र छत्तीसी, अति सुन्दर पहबंध बनाइकि ३७ मानसिंह मान ये खरतरगच्छ के उपाध्याय मिन विधान के शिष्य और सुकवि । इनके रचनायें संवत् १६७० से १६६३ तक प्राप्त होती है। इन्होंने राजस्थानी एवं हिन्दी दोनों में काव्य रचनायें की थी। योग बावनी, उत्पत्ति-नाम एवं भाषा
SR No.090103
Book TitleBhattarak Ratnakirti Evam Kumudchandra Vyaktitva Evam Kirtitva Parichay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal
PublisherMahavir Granth Academy Jaipur
Publication Year
Total Pages269
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth, Biography, & Story
File Size4 MB
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