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परिधानन्य
सुदर कृत सिंगार है, सफल रसनि को सारु ।। नांव धरयो या ग्रंथ को, यह मुदर सिंगार ॥ १४ ॥
यो सुदर सिंगार को, पढ़ें, मुनें सग्यानु ।। तिन मांनी संसार मैं, करमो सुधारस पान ॥१५॥
संत मोरह से इ, दीले ममापीत : कातिक सुदि षष्टि गुरी, रव्यो ग्रंथ करि मीति ॥१६||
सुन्दर श्रृंगार की प्रशस्ति से मालूम होता है कि कवि ग्वालियर के रहने वाले ब्राह्मण कवि थे जैन नहीं थे ।
२८. परिहामन्च (नन्दलाल)
परिहानन्द नागरा के पास गौसुना ग्राम के रहने वाले थे लेकिन बाद में प्रागरा पाकर रहने लगे थे। वे ग्रामवाल' जातीय गोयल गोत्र के नायक थे। उनकी माता का नाम चन्दा तथा पिता का नाम भैरू था । काशी नागरी प्रचारिणी पत्रिका हस्तलिखित ग्रंथों की खोज २०वां वार्षिक विवरण में माता का नाम चन्दन दिया हुआ है । २ कवि के समय में आगरा पूर्ण वैभवशाली नगर था जहा सभी तरह का व्यापार था जिस कारण वहाँ कषि के शब्दों में असंख्य धनवान रहते थे। उस समय आगरा मथुरा मंडल का उत्तम नगर माना जाता था।
परिहानन्द ने हिन्दी के अच्छे कवि थे उन्होंने यशोधर चरित्र को संवत् १६७० श्रावण शुकला सप्तमी सोमवार को समाप्त किया था । डा, प्रेमसागर जैन ने कवि का नाम परिहानन्द के स्थान पर नन्दलाल लिखा है | नन्द नाम से संबत
१. अग्रवाल वरवंस गोसना गांव को
गोयल गोत प्रसिद्ध चिहन ता ढांव को माता चंबर नाम पिता भैरू मन्यौ
परिहानन्द कही मन मोव अंग न गुन नां गिन्यौं ।१९।। २. माताहि चन्वन नाम पिता भयरो मन्यो
नन्द कही मनमोव गुनी गन ना गन्यो । ३. नगर आगरी भसं सुवासु, जिहपुर नाना मोग विलास ।
बस हि साहब धनी असखि, वनजहि बनज सापहहिन खि । गुरगी लोग छत्ती सौ कुरी, मथुरा मंडल उत्तम पुरी।