________________
भट्टारक रत्नकीति एवं कुमुदचन्द्र : अक्तित्व एवं कृतित्व
२६
ये । लेकिन यह बागड प्रदेश इंगरपुर वाला बागड़ प्रदेश नहीं है किन्तु देहली के प्रासपास के प्रदेश को बागड प्रदेश कहा जाता था ऐसा डा प्रेमसागर जैन ने माना है। हाल जैन के अनुसार मुन्दरदास शाहजहाँ के कृपापात्र पनियों में से थे । बादशाह ने इनको पहिने' कविराय और फिर महाकवि राय का पद प्रशान किया था। डा. जैन ने लिखा है कि मुन्द दास राजस्थानी कवि थे तथा जयपुर से ५० किलोमीटर पूर्व की ओर स्थित दौसा उनका जन्म स्थान था । इनकी माता का नाम सती एवं पिता का नाम चौरला शा · सरना मत कति इनके अभी तक चार ग्रन्थ एवं कुछ 'फटकर रचनायें प्राप्त हो चुकी हैं। ग्रन्थों के नाम हैं सुन्दरसतसई, सून्दर विलाम, सुन्दर शृगार एवं पाखंड पंचासिका। जयपुर के छोलियों के मन्दिर में पद एव सहेलीपील भी मिलता है। सहेलीनीत का प्रारम्भ निम्न प्रकार हुआ है
सहेल्लो हे यो संसार अमार गोचित में या अपनों जी सहेल्लो हे ज्यों राचें तो गवार सन . जोबन पिर नहीं ।
सुन्दर शृगार-इसकी एक प्रति साहित्य शोध विभाग जयपुर के संग्रह में है जिसमें ३५६ पद्य है। प्रारम्भ में कवि ने अपना एवं वादशाह शाहजहाँ का परिचय निम्न प्रकार दिया है
तीन पहरि लो रनि नले, जवि देसनि नांहि । जीत लाई जगती इती, साहिनहा नर माहि ।।८।।
कूल दरिया स्वाई कियो, कोटतीर के सांब । पाठो दिसि यो बसि करि, यों कीज इक गांव ।।१।।
साहि जहां जिन गुननि कों, दौने अगनित दान । तिन मैं सुन्दर सुकवि को, कीयो बहुत सगपांन ।।१०।।
नम भूपन भनि सबद थे, हा हाथी सिर पाद । प्रथम दीयौ कवि राय पद, बहुरि महाकवि राम ।।११।।
वित ग्वारियर नगर को, बाम: है कविराज 1 जासी साहि मया करौं, सदा गरीब निवाज ||१२।।
जब कवि को मन यौं बछौ, तब यह कीयो बिचारू । बरनि नाइका नायक विरच्यो ग्रंथ विस्तार ॥ १३ ।।