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भट्टारक रत्नकीर्ति एवं कुमुदचन्द्र : व्यक्तित्व एवं कृतित्व
१६६३ वाली कुप्ति "सुदर्शन सेठ कथा' को भी इन्हीं कवि की रचना स्वीकार किया है । सुदर्शन सेठ कथा कि एक प्रति भट्टारकीय शास्त्र भण्डार अजमेर में सुरक्षित है ।
कवि की तीसरी कृति 'गूढ विनोद' में भी कवि ने अपना नाम मन्द ही दिया है । इसकी एक पाण्डुलिपि जयपुर के पंडित लगकर एजी के शास्त्र भण्डार में संहति है।
यशोधर चरित्र ५९८ पद्यों का प्रबन्ध काव्य है । रचना भाषा एवं शैली को। पुष्टि से यह एक उत्तम कृति हैं । यह काव्य अभी तक अप्रकाशित हैं ।
२८, परिमल्ल
परिमल्ल कवि हिन्दी के १७वीं शताब्दी द्वितीय चरण के कवि थे । ये प्रथम कवि हैं जिन्होंने काव्य प्रारम्भ करने की तिथि दी है नहीं तो सभी कवि रचना समाप्ति की तिथि देते हैं । परिमल्ल का श्रीपान रित एक मात्र काव्य है जिसकी अभी तक उपलब्धि हुई है। कवि ने इसे संवत १६५ ग्राम शुक्ला अष्टमी अष्टाह्रिका पर्व के प्रथम दिन प्रारम्भ किया था।
संवत् सोलह से उच्चरयो मांत्रण इक्यावन प्रागगे। मास अषाद पहुतो भाइ वरषा रीित ककहे बढाइ । पक्ष उजाली पाट जाणि, सक्रवार वार परारिए । कवि परिमल्ल सद्ध करि चित, प्रारम्भ्यो श्रीपाल चरित ।
उस समय देश पर बादशाह अकबर का शासन था । चारों और सुख शान्ति थी कवि ने अकबर को दूसरा भानु लिखा है
बब्बर गाति साह हर गयौं, ता सुत साहि हमाऊ भग। जा सुत अकबर माहि समारण, सो तप तो दूसरी भारत ।।३२।।
ताके राज न हो अनीति, बराधा बहत करि वसि जीति । कितेक देस तास की प्रांन, दुगों और न ताहि समान ॥३३।।
वंश परिचय–रिमलान पनि अत्यधिक राम्मानित वंश से सबंधित थे इनकी जाति विरहिया जैन थी । कवि के प्रपितामह नंदन पौधरी थे जो ग्वालियर के राजा भानसिंह द्वारा सम्मानित थे । उनको कीर्ति चारों और फैनी हुई थी। वे स्वयं प्रतापी थे तथा अपने कुल को प्रगन्न रखने वाले थे । कवि के पितामह रामदास एवं पिता प्रासकरन थे। ये प्रासकरण के पुत्र थे । परिमल प्रागरा में प्राकर रहने लगे