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जगजीवन
उनके पिता का नाम अभयराज था। उनके कितनी ही स्त्रियां थीं जिनमें मोहनदे सबसे अधिक प्रसिद्ध थी' और जगयीवन की माता भी वहीं थी । कवि अप्रवाल गर्ग गोत्रीय श्रावक थे । इनकी अच्छी शिक्षा दीक्षा हुई थी इसलिये थोड़े ही दिनों में उनकी चारों पीर स्वाति फैल गई। जगजीवन ज्ञानियों की मंडली के अगुवा बन गये ।
जगजीवन बनारसीदास के परम भक्त थे तथा उनकी रचनाओं से परिचित थे। बनारसीदास की मृत्यु के पश्चात जगजीवन ने संवत् १७०१ में उनकी सभी रचनात्रों का एक ही रधान पर संकलन करके उसका नाम बनारसी विलास रखा और साहित्यिक क्षत्र में अपना नाम अमर कर लिया । जगजीवनराम स्वयं भी कवि थे। इसलिये उन्होंने एकीभाव स्तोत्र की एवं भूपाल चौबीसी की भाषा टीका की थी। इनके कितने ही पद भी मिलते हैं। डा०प्रेमसागर ने भूपाल चौबीसी का उल्लेख नहीं किया है।
जगजीवनराम के समय अागग साहित्यकारों साहित्यसे वियों का प्रमुख केन्द्र था। पं० हीरानन्द ने समयमरण विधान की प्रशस्ति मे जगजीवनराम का अच्छा वर्णन किया है जो निम्न प्रकार है
प्रय मनि नगरगज घागरा, सकल लोक अनुपम सागरा । साहजहाँ भूपति है जहां, राज करे नयमारग तहाँ ।।७।। ताको जाफरनां उमराउ, पंचहजारी प्रगट कराउ । ताको अगरवाल दीवान, गरगगोत सब विधि परधान ॥७९।।
संघही अभैराज जानिये, सुखी अधिक मात्र करि मानिये । बनितागण नाना परकार, तिनमें लघु मोहनदे सार ||८|| ताको पूत पृत-मिरमौर, जगजीवन जीवन को ठौर । सुन्दर शुभवरूप अभिराम, परम पुनीन धरम-धन-धाम ।।८१॥
१.
नगर भागरे में अगरवाल गरगगोत मापर मवलसा । संघ ही प्रसिद्ध अमिराज राज माननीक, पंचवाल मलनी में मयो है वलसा । साके प्रसिद्ध लघु मोहन दे संघइनि, जाके जिनमारग विराजित पवलसा । ताहि को सपूत जगजीवन सुनिट अंग, बनारसी बैन के हिए में सबलसा । सम जोग पाइ जग जीषम विष्यात भयो, ज्ञान की मंडली में जिसको विकास है।
२.