________________
भट्टारक रत्नकीति एवं कुमुदचन्द्र व्यक्तित्व एवं कृतित्व
इससे दो बातों पर प्रकाश पड़ता है-- एक तो यह कि संवत् १७०१ में श्रागरे में जाताओं की एक मंडली मा आध्यात्मियों को संली थी, जिसमें संघवी जगजीवनराम, पं" हेमराज, रामचन्द, संघी मथुरादास, भवालदास, और भगवतीदास थे । भगवतीदास की "स्वपरप्रकाश" विशेषण दिया है। ये भगवतीदास बेही जान पड़ते हैं जिनका उल्लेख बनारसीदास ने नाटक समयसार में निरन्तर परमार्थ चर्चा करने वाले पंच पुरुषो में किया है। हीरानन्दजी अपने दूसरे त्यो ग्रन्थ पंचास्तिकाय ( १७०१ ) में भी धनभल और मुरारि के साथ इन्हीं का ज्ञातारूप में उल्लेख किया है |
काल-लबधि कारन रस पाई, जग्यो जथारथ अनुभौ आइ । अह्निसि ग्यानमंडली चैन, परत और सब दीस फॅन ||६२||
दूसरी बात यह है कि जफरखां बादशाह शाहजहां का पांचहजारी उमराव था जिसके कि जगजीवन दीवान थे और जगजीवन के पिता श्रभयराज सर्वाधिक सुखी सम्पन्न थे । उनके अनेक पत्नियां घी जिनमें से सबसे छोटी मोहनदे से जगजीवन का जन्म हुआ था 1
१.
२४. कुंरपाल
ये कविवर बनारसीदास के अभिन्न मित्र थे। जिन पांच साथियों के साथ बैठकर बनारसीदास परमार्थ चर्चा किया करते थे उनमें कुमरपाल का नाम भी सम्मिलित है । पाण्डं हेमराज ने उन्हें ज्ञाता अधिकारी के रूप में स्मरण किया है । महोपाध्याय मेघविजय ने अपने "युक्ति प्रबोध" में उनकी सर्वमान्यता स्वीकार की है। स्वयं कवि कुअंरपाल ने अपनी "समकित बत्तीसी" में अपना यश चारों और नगरों में फैलने के लिये लिखा है ।
१.
ཏི ཙ
२७
कुंवरपाल बनारसी मित्र जुगल इक वित्त । तिनहि प्रय भाषा कियो बह विधि छन्द कवित || २ || रूपचंद पंडित प्रथम, सुतिय चतुभुज नाम | तृतीय मगोतीवास नर, कौरपाल गुलधाम ॥ घरमवास ए पंच जम, मिलि बैठे इक ठोर | परमारथ चरचा करे, हम के कथा न श्रोर ॥
पुरि पुरि कंवरपाल जस प्रगट्यो, बहुविध ताप स वर गिज्जई । धरमदास जसकंवर सदा धनी बसाखा बिस्तर किम किंज्जई ।