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भट्टारक रन कीर्ति एवं कुमुदचन्द्र : व्यक्तित्व एवं कृतित्व
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पांडे जिनदास के अम्बू स्वामी चरित' काव्य के अतिरिक्त और भी कृतियाँ उपलब्ध होती हैं जिनमें नाम है चेतनगीत, जखडी, मालीरास, जोगीरास मुनीश्वरों की जयमाल, धर्मरासगीत, राजुलसज्ज्ञाय, सरस्वती जयमाल, मादित्यवार कथा, दोहा बावनी, प्रबोध' बावनी, बारह भावना आदि के नाम उल्लेखनीय हैं।
कवि का विस्तृत परिचय अकादमी के किसी अगले भाग में दिया जायेगा।
१६. पाण्डे राजमल्ल
पांडे राजमल उपलब्ध राजस्थानी गद्य के सबसे प्राचीन दिगम्बर जैन लेखक हैं ये विराट नगर रा3) के रहने गाले थे । इसी शिक्षा दी! कहां हुई इसकी तो अभी पोज होना शेष है लेकिन ये प्राकृत एवं संस्कृत के अच्छे विद्वान थे। इन्होंने याचायें कुन्दकुन्द के समयसार वो बोलावबोध टीका लिखी थी। इसी टीका के आधार पर महाकवि बनारपीदास ने समयसार नाटक की रचना की थी। इसी बालावबोध टीका का उललेख महाकवि बनारसीदास ने अपने अर्धकथानक में किया है।
श्री नाथूराम प्रेमी ने इनकी जम्यूस्वामी चरित, लाटी सहिता, अध्यात्मकमलमातन्ड, छन्दोविघा एवं पंचाध्यायी रचनायें होना लिखा है। ३ (अर्धकथानक पृष्ठ संख्या ५)
१७. छीतर ठोलिया
छीतर ठोलिया मौजमाबाद के निवासी थे। इनकी जाति खंडेलवाल एवं गोत्र ठोलिया था । इनकी एकमात्र रचना होली की कथा संवत् १६५० की कृति है जिसको उन्होंने अपने ही ग्राम मौजमाबाद में निबद्ध की थी। उस समय नगर पर पामेर के राजा मानसिंह का शासन था। होली की कथा सामान्य रचना है ।
१. पाण्डे राजमल्ल जिनधरणी, समयसार नाटक के मरमी ।
तिम गिरंथ की टीका कीनी शलाबोष सुगम कर दीमी ।। वि. सं. १६८४ में प्रध्यात्म घर्चा के प्रेमी प्ररथमल ढोर मिले और उन्होंने समयसार नाटक को राजमहल कृत टोका का ओर कहा कि तुम इसे पढ़ी इसमें सत्य क्या है सो तुम्हारी समझ में श्रा जावेगा।
अर्थ कथानक--पृष्ठ संख्या ४७ ४. शाकम्भरी के विकास में जैन धर्म का योगवान–डा. कासलीवाल, पृष्ठ ४७