________________
L 2
२२
दुख कलेस न संचरे । तीस धरा नव निधि थिति पाई || श्री ॥ १६४ ॥
रास संवत् १६९७, वैशाख सुदी १ के दिन समाप्त हुआ था ।
राम में पार्श्वनाथ के जीवन का पद्य कथा के रूप में वर्णन है । कमठ ने पार्श्वनाथ पर क्यों उपसर्गे किया था, इसका कारण बताने के लिये कवि ने कमठ के पूर्व-भव का भी वर्णन कर दिया है। कथा में कोई चमत्कार नहीं है। कवि को उसे अति संक्षिप्त रूप में प्रस्तुत करना था सम्भवतः इसीलिए उसने किसी घटना का विशेष वर्णन नहीं किया |
१.
पाण्डे जिनवास
נ
१४. मुनि राजचन्द्र
राजचन्द्र मुनि थे लेकिन ये किसी भट्टारक के शिष्य थे अथवा स्वतन्त्र रूप से विहार करते थे इसको अभी कोई जानकारी प्राप्त नहीं हो सकी है। ये १७वीं शताब्दी के विद्वान थे। इनकी अभी तक एक रचना "चम्पावती सील कल्याणक" हो उपलब्ध हुई है जो संवत् १६८४ में समाप्त हुई थी। इस कृति की एक प्रति दि. जंन खण्डेलवाल मन्दिर उदयपुर के शास्त्र भण्डार में संग्रहीत है। रचना में १३० पद्य है ।'
१५. पाण्डे जिनवास
पाण्डे जिनदास व. शान्तिदास के शिष्य थे। डा. प्रेमसागर ने शाद्रिदास को जिनवास का पिता भी लिखा है जिसका आधार बड़ौत के सरस्वती मण्डार की जम्बूस्वामी चरित की पांडुलिपि है जिसमें शिष्य के स्थान पर सुत पाठ मिलता है । जिनदास आगरा के रहने वाले थे। बादशाह अकबर के प्रसिद्ध मन्त्री टोबरशाह इनके श्राश्रयदाता थे तथा टोडरशाह के पुत्र थे दीपाशाह जिनके पढ़ने के लिये उन्होंने प्रस्तुत काव्य का निर्माण किया था । टोडरशाह के परिवार में रिखबदारू, मोहनदास, रूपचन्द, लक्ष्मणदास, आदि और भी व्यक्ति में जो सभी धार्मिक प्रवृत्ति वाले थे तथा कवि पर उनकी विशेष कृपा थी ।
सुविचार घरी तप करि, ते संसार समुद्र उस्तरि ।
महनारी सांमलि जे रास, ते सुख पांमि स्वर्ग निवास ।। १२९ ।। संत सोल चुरासीय एह, करो प्रबन्ध भाव यदि तेह |
तेरस विन प्राविस्य सुद्ध वेलावही, मुनि राजचन्द्रकहि हरक्षण लहि ॥ १३० ।। इति पावती सील कल्याणक समाप्त ॥