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भट्टारक रत्नकीति एवं कुमुदचन्द्र : व्यक्तित्व एवं कृतित्व
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तहां श्री नेमचन्द गरपति भयो । लास के पाट जिन सोभे जी भाग ।। श्री जसकीरति मनिपति भयो। जाणो जी तक अति शास्त्र पुराण ॥श्री।।१५९।।
तास' को शिष्य मुनि अधिक (प्रवीन) । पंच महाव्रतस्यो नित लीन ।। तरह घिधि चारित घरं । व्यंजन कमल विकासन चन्द ।। ज्ञान गो हम जिसौ अवि........ले । मुनिवर प्रगट लुमि श्री गुणचन्द ।।श्री।। १६० ॥
तासु तगा मिघि पडित कपूर जी चन्द । कीयो राम निति धरिवि आनन्द ।। जिनगुण कहु मुझ अल्प जी मति । जसि विधि देन्या जी शास्त्र-पुराण ।। बुधजन देवि को मति हंस ।
तंसी जी विधि में कीयो जी बखाण ||श्री।।१६१।। सोलास सत्ताधरपवे मासि बंसारिख । पंचमी तिथि सुभ उजला पाखि ।। नाम नक्षत्र प्राद्रा भलो । बार बृहस्पति अधिक प्रधान ।। रास फीयो वामा सुत तगो ।
स्वामीजी पारसनाथ के थान ||धी॥१६२।। अहो देस को राजाजी जाति राठोड । सकान जी छत्री थाके सिरिमोड ।। नाम जसवन्तसिंघ तसु तो । तास प्रानन्दपुर नगर प्रधान ॥ पोरिए छत्तीस लीला करे । सोमं जी तहां जीण उत्तग। मंडप वेदी जी अधिक प्रमंग ग जिण तणा विध सोभे भला । जो नर वंदे मन वचकाई ।।