________________
समर्थन प्राप्त हुया उनमें सर्व श्री स्व: साह शान्तिप्रसाद जी जन, श्री गुलाबचन्द जी मंगवाल रेनवाल, श्री अजितप्रमाद जी जैन ठेकेदार देहली, श्रीमती सुदर्शन देवी जी छाबड़ा अयपुर, प्रोफेसर अमृतलालजी जैन दर्शनाचार्य एवं लाल दरबारीलाल जी कोठिया वाराणसी, श्रीमती कोकिला सेठी जयपुर, श्रीमान हनुमान बक्सजी गंगवाल कुली, पं० अनुपचन्द जी न्यायतीर्थ जयपुर के नाम उल्लेखनीय है। योजना की क्रियान्विति, प्रथम भाग के लेखन एवं प्रकाशन एवं अकादमी के प्रारम्भिक सदस्य बनने के अभियान में कोई शा वर्ष निकल गया और हमारा सबसे पहिला भाग जून १९७८ में ज्येष्ठ शुक्ला पंचमी के शुभ दिन प्रकाशित होकर सामने आया । उस समय तक अकादमी के करीब १०० सदस्यों को स्वीकृति प्राप्त हो चुकी थी।
"महाकवि ब्रह्म रायमल्ल एवं भट्टारक निभवनकोति" के प्रकाशित होते ही अकादमी की योजना में और भी अधिक महानुभावों का सहयोग प्राप्त होने लगा। जुलाई १९७९ में इसका दुसरा भाग 'कविवर वच राज एवं उनके समकालीन कवि" प्रकाशित हुया जिसका विमोचन एक भव्य समारोह में हिन्दी के वरिष्ठ विद्वान् डा० सत्येन्द्र जी द्वारा किया गया गया : प्रस्तुत भाग में ब्रह्म बूच राज, ठक्कुरसी, छीहल, गारबदास एवं चतरूमल का जीवन परिचय, मूल्यांकन एवं उनकी ४४ रचनामों के पूरे मूल पाट दिये गये है।
अकादमी का तीसरा भाग महाकवि ब्रह्म जिनदास व्यक्तित्व एवं कृतित्व का विमोचन मई ८० में पांचवां (राजस्थान) में प्रायोजित पंच कल्याण प्रतिष्ठा समारोह में पूज्य क्षु० सिद्धसागर जी महाराज लाइन वालों ने किया था। इस भाग के लेखक हा प्रेमचन्द रायको है जो युवा विद्वान हैं तथा साहित्य सेवा में जिनकी विशेष रूचि है। तीसरे भाग का समाज में जोरदार स्वागत हुश्रा और सभी विद्वानों ने उसकी एवं अकादमी के साहित्य प्रकाशन मोजना की सराहना की।
अकादमी का चतुर्थ भाग मट्टारक रलकीति एवं कुमुदचन्द्र" पाठकों के समक्ष प्रस्तुत है। इस भाग में संवत् १६३१ से १५०० तक होने वाले भट्टारक रत्नकीति एवं कुमुदचन्द्र के अतिरिक्त ६६ अन्य हिन्दी कवियों का भी परिचय एवं मूल्यांकन प्रस्तुत किया गया है । यह युग हिन्दी का स्वर्णयुग रहा और उसमें कितने ही ख्याति प्राप्त विद्वान हुये । महाकवि बनारसीदास, रूपचन्द, ब्रह्म गुलाल, ब्रह्म रायमल्ल, मट्टारक, अभय चन्द, समयसुन्दर जैसे कवि इसी युग के कवि थे ।। पंचम भाग
अकादमी का पंचम भाग प्राचार्य सोमकीर्ति एवं ब्रह्म यशोधर "प्रेस में प्रकाशनार्थ दिया जा चुका है। तथा जिसके नवम्बर ५१ तक प्रकाशन की संभावना
(iii)