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प्राचार्य जयकीति
महाकाव्य लिया था। उसी को देख कर जनन्द ने संवत् १६६३ में ग्रागरा नगर में प्रस्तुस काव्य को पूर्ण किया था। जनन्द ने भट्टारक वशकीति क्षेमकौति तथा त्रिभुवनकीर्ति का उल्लेख किया है। इसी तरह बादशाह अकबर एवं जहांगीर के शासन का भी वर्णन किया है काब्य यद्यपि अधिक बड़ा नहीं है किन्तु भाषा एवं वर्णन की दृष्टि से काव्य अच्छा है।
___ काव्य की छन्द संख्या २०६ है। काश्य के प्रमुख छन्द दोहा, चौपई एवं सोरठा है । कवि ने निम्न छन्द लिखकर अपनी लधुता प्रकट की है।
छंद भद पद हो, तो कछू जान नाहि । ताको कियो न खेद, कथा भई निज भक्ति बस ।।
१०. वर्षमान कवि
___ कवि की रचना वर्धमान रास है जो भगवान महावीर पर प्राचीनतम रास कृति है जिसका रचना काल संवत् १६६५ है । काथ्य की दृष्टि से यह अच्छी रचना है। वर्धमान कवि ब्रह्मचारी थे प्रौर भट्टारक वादिभूषण के शिष्य थे । रास की एकमात्र पाण्डुलिपि उदयपुर के अग्रवाल दिगम्बर जैन मन्दिर में संग्रहीत है।
११. माचार्य जयकीति
भाचार्य जयकौति हिन्दी के प्रच्छे कवि थे । दाहोंने भट्टारक सकलकीति की परम्परा में होने वाले . भ. रामकीति के शिष्य अझ हरखा के प्राग्रह से "सीता शील पताका गुण बेलि" की रचना संवत् १६७४ ज्येष्ठ मुदी १३ बुधवार को दिन समाप्त की थी। स्वयं कथि द्वारा लिखी हुई मूल पाण्डुलिपि दि० जैन अग्रवाल मन्दिर उदयपुर में संग्रहीत है।' इसका रचना स्थान गुजरात प्रदेश का फोट नगर था । जहां के आदिनाथ चैत्यालय में इन्होंने सीताशील पताका गुण बेलि की रचना समाप्त की थी। कवि की अन्य रचनामों में अकलकति रास, पारदत्तमिश्रानन्द रासो, रविव्रत कथा, वसुदेव प्रबन्ध, शील सुन्दरी प्रबन्ध, चंचलरास के नाम उल्लेखनीय है जयकीर्ति के कुछ पद भी मिलते हैं।
जयकीर्ति पहिले प्राचार्य थे लेकिन बाद में काष्ठासंघ की सोमकीर्ति की परम्परा में रत्नभूषण के बाद में मट्टारक बन गये थे। बंकचूल रास को रचना --- ---..- --.
१. संबत १६७४ आषाढ सुबी ७ गुरौ श्री कोटनगरे स्वज्ञानाधरणी कर्मक्षयाय
आ. श्री जयकीतिमा लिखितेयं । ग्रंथ सूची पंचम भाग-पृष्ठ संख्या ६४५