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भट्टारक रकीति एवं कुमुदचन्द्र व्यक्तित्व एवं कृतिल
७. ठाकुर कवि
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साह ठाकुर राजस्थानी कवि थे । श्रव तक इनकी तीन रचनाएं उपलब्ध हुई हैं जिनके नाम हैं "शांतिनाथ चरित महापुराण कलिका, सज्जन प्रकाश दोहा | इनमें शांतिनाथ चरित अपभ्रंश काव्य है जो पांच सधियों में पूर्ण होता है। प्रस्तुत काव्य में सोलहवें तीर्थंकर शांतिनाथ का जीवन चरित वर्णित है । इसका रचना काल संवत् १६५२ भाद्रपद शुक्ला पंचमी है । आमेर इसका रचना स्थान है । उस समय आमेर पर राजा मानसिंह एवं देहली पर बादशाह अकवर का शासन था।
कवि के पितामह साहू सील्हा और पिता का नाम खेता था । जाति खण्डेल बाल एवं गोत्र लुहाडिया था। वे "लुवाउरिगपुर" लवाण के निवासी थे । वह नगर जन धन से सम्पन्न था। वहां चन्द्रप्रभस्वामी का मन्दिर था । कवि की धर्मपत्नी गुरुभक्त और गुणग्राहिणी थी। इनके घर्मदास एवं गोविन्ददास दो पुत्र थे इनमें धर्मदास विद्याविनोदी एवं सब विद्याओं का ज्ञाता था ।
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ग्रंथकर्ता ने प्रशास्ति में अपनी जो गुरु परम्परा दी है उसके अनुसार वे भट्टारक पद्मनन्दि की ग्राम्नाय में होने वाले भट्टारक विशालकीति के शिष्य थे ।
कवि की दूसरी रचना महापुराण कलिका है जिसमें २७ संधियां है तथा जिसमें ६३ शलाका पुरुष चरित्र वर्णित है | इसका रचना काल संवत् १६५० दिया हुआ है । "सज्जन प्रकाश दोहा " सुभाषित रचना है ।
५. देवेन्द्र
काव्य लिखे गये हैं । को अपने कामों का
यशोधर के जीवन पर सभी भाषाओं में कितने हो राजस्थानी एवं हिन्दी में भी विभिन्न कवियों ने इस कथा आधार बनाया है | इन्हीं काव्यों में देवेन्द्र कृत यशोधर चरित भी है जिसकी प लिपि हूंगरपुर के शास्त्र भण्डार में उपलब्ध हैं । व्य वृहद है । इसका रचना काल सं. १६८३ है । देवेन्द्र विक्रम के पुत्र थे जो स्वयं भी संस्कृत एवं हिन्दी के अच्छे कवि थे । कवि ने महुधा नगर में यशोधर की रचना समाप्त की थी।
९. अनन्द
संवत् १६ या श्रीसि असो सुदी बीज शुक्रवार तो । रास रच्यो नवरस भर्यो महुप्रा नगर मझार ता ॥
सुदर्शन के जीवन पर महाकवि नयनन्दि ने अपभ्रंश में संवत् ११०० में