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________________ कल्याएकीर्ति कोट नगर था जहां भगवान प्राबिनाथ का दि. जैन मन्दिर था जिसमें बैठकर ही कवि ने इसका निर्माण किया था । प्रबन्ध का प्रारम्भिक अंघा निम्न प्रकार है। श्री मूल संथ उपयांचलि, मामेंद्र बिर । श्री सकल को रति गुरू अनुक्रमि, नमश्री रापकीरति शुभकाय ॥४॥ तस पद कमल दीवाकर नमू, श्री पदमनंदी सुखकार | वादि वारण केशरि अकलंक एह अवतार ।।५।। नीज गुरू देवकीरति मुनि प्रणभूचित धर नह । मंडलीक महा श्रेणीकनो प्रबन्ध रचु गुण येह ।।६।। + + + + नमी देवकीरति गुरु पाय ।। जिन देव रे भावि जिन पद्नाभ जाणज्यो । कल्याण कीरति मुरीवर रच्यो रे ।। ए श्रेणिक गुण मणिहार ॥ बागड विम्ल देश शोमतो रे । तिहां कोट नयर सुखकार ||६|| धनपति विमल बसे धरणा रे । धनवंत चतुर दयाल ।। तिहों आदि जिन भवन साहामणू रे तशिका तोरण विशाल । उत्सव होयि गावि माननी रे वाजे ढोल मृदंग कंशाल' ।। जिन. भावि ।। आदर ब्रहसिंघ जी तणोरे । तहां प्रबंध रच्यो गुणमाल संबत सतर पंचोतरि रे । पासा सुदि नीज रवि || ए सांभनि गायि लिखि' भावसुरे। ते तहि मंगलाचार ।। जिन देवेरे भावि जिन पद्मनाभ जाणज्यो ।।१३।। इनके अतिरिक्त बाहुबन्ति गीत, नेमिराजुलसंवाद, प्रादीपवर बघावा. तीर्थकर विनती एवं पार्श्वनाथ रासो है । पाश्र्वनाथ रास का रचनाकाल सवत १६१७ है तथा इसकी पाण्डुलिपि जयपुर के पाण्डे लूणकरण जी के शास्त्र भण्डार में संग्रहीत हैं। कवि का विस्तृत मूल्यांकन किसी दूसरे भाग में किया जावेगा। १. राजस्थान के जैन शास्त्र भण्डारों की प्रन्थ सूची भाग-2-पृष्ठ-७४
SR No.090103
Book TitleBhattarak Ratnakirti Evam Kumudchandra Vyaktitva Evam Kirtitva Parichay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal
PublisherMahavir Granth Academy Jaipur
Publication Year
Total Pages269
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth, Biography, & Story
File Size4 MB
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