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________________ भट्टारक रस्मकीर्ति एवं कुमुदचन्द्र ; व्यक्तित्व एवं कृतित्व हस प्रमर कुमारनि, तिहां धनपत्ति बिलिखए । प्राशाद प्रतिमा जिन नुति करि सुकृत संचए ॥१२॥ सुकृति सचिरे व्रत बहु याचरि, दान महाशय रे जिन पूजा करि । करि र गान मात्र नंद्र किन पाए। बावन सिखर सोहामणां ध्वज कनक कलश विसालाए ॥१३॥ मंडप मध्यि रे समवसरण सोहिं, श्री जिनबिब रे मनोहर मन मोहि । मोहि जन मन प्रति उन्नत मानस्थम्भ विसालए । तिहां विजयभद्र विख्यात सुन्दर जिन सासन रक्ष पालए ।।१।। तिहां चोमासि के रचना करि सोल वारागिरे ;१६६२: मासो अनुरि । अनुसरि मास शुक्ल पंचमी श्री गुरुचरण हृदयधरि । कल्याणकीरति कहि सन्जन भणो सुमो आदर करि ॥१५॥ प्रादर ब्रह्म संधजीतणि विनयसहित मुम्मकार । ते देखि चासदसनो प्रबंध रच्यो मनोहा ।।१।। -.. -----". कधि की एक और रचना "लघु याहुबनि अलि" तथा कुछ स्फट पर भी मिले हैं । इसमें कवि ने अपने गरु के रूप में शान्तदास के नाम का उल्लेख किला है। यह रचना भी अच्छी है तथा इसमें पोट बन्द का उपयोग हुआ है । रचना का अन्तिम छन्द निम्न प्रकार है भरोश्वर प्रावीया नाम्युनिज वर शशि जी । स्तवन करी इम जंपए, हू किकर तु ईस जी । ईश तुमनि छोंडी राज मननि पापीउ । इम कहीइ मंदिर, गया सुन्दर शान भुवने व्यापोउ । श्री कल्याणकीरति सोममूरति चरण मेवक इम भणि । शांतिदास स्वामी बाहुबलि मरा राखु मझ तह्म तणि ॥१॥ कवि की दूसरी बड़ी रचना धेणिक प्रबन्ध है जिसका रचना काल संवत १७०५ है। जैसा कि रचना का नाम दिया हुआ है यह एक प्रबन्ध काम है जिसमें महाराजा श्रेणिक का जीवन चरित्र निबद्ध है । इसकी पाण्डलिपि शास्त्र मंडार दि. जैन मन्दिर फतेहपुर (शेखावटी) में संग्रहीत है । इसका रचना स्थान बांगड देश का
SR No.090103
Book TitleBhattarak Ratnakirti Evam Kumudchandra Vyaktitva Evam Kirtitva Parichay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal
PublisherMahavir Granth Academy Jaipur
Publication Year
Total Pages269
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth, Biography, & Story
File Size4 MB
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