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________________ भट्टारफ रत्नकीर्ति एवं कुमुदचन्द्र : व्यक्तित्व एवं कृतित्व किसी न किसी रूप में अध्यात्म विषय से भोत प्रोत हैं । कवि मात्मा और परमात्मा के गुणगान में इतने बिभोर हो गये थे कि उनका प्रत्येक शब्द अध्यात्म की छाया लेकर निकलता था। ४. प्रकथानक यह कवि द्वारा लिखा हुया स्वयं का जीवन चरित्र है। कवि ने इसमें अपने ५५ वर्ष की जीवन घटनाओं को सही रूप में उपस्थित किया है । इसमें संवत् १६९८ तक की सभी घटनायें प्रा गई हैं । श्रद्धं वाथानक में तत्कालीन शासन व्यवस्था एवं सामाजिक स्थिति का भी अच्छा परिचय मिलता है । इसमें सन मिला कर ६७३ चौपई तथा दोहे हैं। ५. मोहविवेक युद्ध यह एक स्पक काव्य है जिसका नायक विक्षक एवं प्रति नायक मोह है । दोनों में विवाद होता है और दोनों ओर की सेवायें सजकर युद्ध करती हैं। अन्त में विवेक की जीत होती है। यर्णन करने की शैली एवं नायक प्रतिनायक का सयाद सरल किन्तु गम्भीर अर्थ लिये हुए हैं । ६. माझा मांझा कवि की ऐसी कृति है जिसका संग्रह बनारसी विलास में नहीं मिलता है। यह उपदेशात्मक कृति है जिसमें केवल १३ पद्य है। कवि ने अपने नाम का प्रथम, चतुर्थ एवं तेरहमें पद्य में उल्लेख क्रिमा है। रचना नवीन है इस लिये पाठकों के रसास्वादन के लिये पूरी रचना ही दो जा रही है। माया मोह के तु मतवाला तू विषया विषहारी राग दोष पयो बान ठगो पार कषायन मारी कुरम कुटुम्ब दीका ही फायो मात तात सुत नारी कहत दास बनारसी, अलप सुख कारने सो नर भव बाजी हारी ॥१॥ तू नर भी हार प्रकारज कीतो समझन रहील्यो पासा । मानस जनम प्रमोलिक हीरा, हार गवायो खासा । दर्स दृष्टा ते मिसन दहेला, नर भव गत चिपकासा ।।२।। वासा मिले न नरभव गति विष, प्रण र गत विच जासी । बाजीगर दे बाँदरवा गण, में मैं कर विलबासी।
SR No.090103
Book TitleBhattarak Ratnakirti Evam Kumudchandra Vyaktitva Evam Kirtitva Parichay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal
PublisherMahavir Granth Academy Jaipur
Publication Year
Total Pages269
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth, Biography, & Story
File Size4 MB
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