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________________ महाकवि बनारसीदास लिखी थी। उसी टीका ग्रंथ के अाधार पर बनारसीदास ने नाटक समयसार की रचना की थी जिसका रचनाकाल संवत् १९९३ माश्विन शुक्ला प्रयोदशी है । इस ग्रंथ में ३१० दोहा सोरठा, २४५ इकतीसाक वित्त ८६ चौपाई ३७ तईसा सवैया २० छप्पय १८ घनाक्षरी ७ अडिल और ४ कुडलियां इस प्रकार सब मिलाकर ७२७ पद्य है । नाटक समयसार में अज्ञानी की विभिन्न अवस्थाएं, ज्ञानी की अवस्थाएं. ज्ञानी का हृदय, संसार और शरीर का स्वप्न दर्शन, प्रात्म जागति, आत्मा की अनेकता मनकी विभिन्न दौड एव सप्त व्यसनों का सच्चा स्वरूप प्रतिपादित करने के साथ जीव, अजीव. प्रास्त्रव, बंध, संवर, निर्जरा और मोक्ष इन सात तत्वों का काव्य रूप में चित्रण किया गया है। ३. बनारसी विलास इस ग्रंथ में महाकवि बनारसीदास की विभिन्न रचनाओं का संग्रह हैं। यह संग्रह प्रागरा निवासी जगजीवन द्वारा बनारसीदास के कुछ समय पश्चात् विक्रम संवत १७०१ चैत्र शुक्ल द्वितीया को किया गया था । बनारसीदास की अन्तिम कृति "कर्म प्रकृति विधान" र. का. सं. १७०० चैत्र शुक्ला द्वितीया भी इस विलास में मिलती है । विलास में संग्रहीत रचनाओं के नाम निम्न प्रकार है: १. जिनसहस्रनाम, २. सुक्ति मुक्तावलि, ३. ज्ञान बाचनी, ४. वेद निर्णय पंचासिका, ५. शलाका पुरुषों की नामावली, ६. मार्गणा विचार, ७. कर्म प्रकृति विधान, ८, कल्याण मन्दिर स्तोत्र, ९. साधु वन्दना, प, मोक्ष पंडी, ११. करम छत्तीसी, १२. ध्यान बत्तीसी, १३. अध्यात्म बत्तीसी, १४. ज्ञान पच्चीसी, १५. शिव पच्चीसी, १६. भवसिन्धु चतुर्दशी, १७. अध्यात्म फाग, १८. सोलह तिथि, १९. तेरह काठिया, २०. अध्यात्म गीत, २१. पंचपद विधान, २२. सुमति देवी का प्रष्टोतर शत नाम, २३, शारदाष्टक, २४. नवदुर्गा विधान, २५, नाम निर्णय विधान, २६. नवरत्न कवित्त, २७. अष्ट प्रकारी जिनपूजा, २. दश दान विधान, २६. दश बोल ३०. पहेली, ३१. प्रश्नोत्तर दोहा, ३२, प्रश्नोत्तर माला, ३३. भवस्थाष्टक, ३४ षटदर्शनाष्टक, ३५. चातुर्वर्ण, ३६, अजितनाथ के छंद, ३७. शांतिनाथ जिनस्तुति, ३८. नवसेना विधान, ३९, नाटक समयसार के कवित्त, ४०. फुटकर कवित्त, ४१. गोरखनाथ के वधन, ४२. वंद्य मादि के भेद, ४३. परमार्थ निका, ४४. उपादान निमित्त की चिट्ठी, ४५. निमित्त उपादान के दोहे, ४६. अध्यात्म पद, ४७, परमार्थ हिष्टोलना. ४८. अष्टपदी मल्हार, ४९, पार नवीन पद ।। उक्त समरंत रचनाओं में हमें महाकवि बनारसीदास की बहुमुखी प्रतिमा काध्य कुशलता एवं अगाध विद्रता के दर्शन होते हैं । विलास की अधिकांग रचनाएं
SR No.090103
Book TitleBhattarak Ratnakirti Evam Kumudchandra Vyaktitva Evam Kirtitva Parichay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal
PublisherMahavir Granth Academy Jaipur
Publication Year
Total Pages269
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth, Biography, & Story
File Size4 MB
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