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भट्टारक रत्नकीति एवं कुमुदचन्द्र : व्यक्तित्व एवं कृतित्व
१-महाकवि बनारसीदास
बनारसीदास का जन्म संवत् १६४३ माघ शुक्ला ग्यारस रविवार को हुमा था। इनके पिता का नाम खरंग सेन था । प्रारम्भिक शिक्षा प्राप्त करने के पश्चात वे कभी कपड़े का, कमी जवाहरात का और कभी दूसरी चीजों का व्यापार करने लगे। लेकिन व्यापार में इन्हें कभी सफलता नहीं मिली। इसीलिये डाः मोतीच द ने इन्हें असफल व्यापारी के नाम से सम्बोधित किया है । दरिद्रता ने इनका कभी पीछा नहीं छोडा और अन्त तक वे उससे जूझते रहे।
साहित्य की पोर इनका प्रारम्भ से ही झुकाव था। सर्व प्रथम वे शृगार रस की कविता करने लगे और इसी नकर में वे इश्कबाजी में भी फंस गये । अचानक ही इनके जीवन में मोड़ पाया और उन्होंने शृगार रस पर लिखी हुई "नवरस पद्यावली" की पूरी पाण्डुलिपि गोमती में बहा दी। इसके पश्चात् वे अध्यात्मी बन गये और जीवन भर अध्यात्मी ही बने रहे। ये अपने समय में ही प्रसिद्ध कवि हो गये थे और समाज में इनकी रचनात्रों की मांग बढ़ने लगी थी।
रचनाए
बनारसीदास की निम्न रचनाएं मानी जाती हैं:
१-नाममाला ३-बनारसी विलास ५-मांझा ७-नवरस पद्यावली
२-नाटक समयसार ४-पई कथानक ६-मोह विधेक युद्ध
इनमें नवरस पद्यावली के अतिरिक्त सभी रचना प्राप्त होती हैं।
१. नाममाला
बनारसीदास ने धनंजय कवि की संस्कृत नाममाला और अनेकार्थकोष के प्राधार पर इस ग्रंथ की रचना की थी। यह पद्य बद्ध शब्द कोश १७५ दोहों में लिखा गया है। इसका रचनाकाल संवत् १६७. नाश्विन शुक्ला दशमी है। नाम माला कृषि की मोलिन रचना मानी जानी है।
२. नाटक समयसार
कवि की समस्त कृत्तियों में नाटक समयसार अत्यधिक महत्वपूर्ण रचना मानी जाती है । पाण्डे राजमल ने समयमार कलशों पर बालाबोधिनी नामक हिन्दी टीका