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________________ भट्टारक रत्न कीति एवं नुमुदचन्द्र : व्यक्तित्व एवं कृतित्व २१३ दोहा-पुण्य नारो रे मारिणया, पुण्य Vल संसार । पुण्ये मन बन्चित मिले, रूप रंगीली नारि ॥१३ ।। पाप न कीजे पाडुया, पाग यकी दुख थाय । पापी भार्यो प्राणियो, च्यारे गति में जाय ॥ १४ ॥ चौपाई-वंदो विमल बिमल गुणवंत । जेहना घरग नमें नित संत ।। साठि सराशन देहल करयो। हेम वरण मुर्गात बह रहयो । १५ ।। समरो देव दयान अनंत । अवर न कीजे सोटा तंत ।। देह शराशन बे पंच बीरा । हाटक सरखी छवि नवि रीस ।। १६ ।। धर्मनाथ ने मन मो धरो । जिन शिवरमणी हेला परो ।। श्रीस पनर धनुष सोहंत । हेमवरण सुर नर मोहंत ॥ १७ ॥ शांतिनाथ नू समरो नाम । जिन अपात टाले से टांग ।। विसुरणां बीस शरासन वैर । हेम वरण जागो नवि फैर ॥ १ ॥ कुथु जिनेश्वर करूया कंद । __ जेहना चरण नमे सुर वुद ॥ भनुष बीस पनर तन कायः हेम बरण सुर नर जस गाय ।। १६ ।। समऱ्या गिद्धि करे अरनाय ।। __मुगति पुरी नो जे जिन साथ ।। धनुष श्रीस ऊचा अति भला । गात कुभ नरषी तनु कला ॥ २० ।। मल्लि जिनेश्वर महिमा घणो । जह टाले फेरो भवतंगों । कच अग धनुष पंच बीस । हेम वरण सेवो निषा दीश ॥ २१ ।।
SR No.090103
Book TitleBhattarak Ratnakirti Evam Kumudchandra Vyaktitva Evam Kirtitva Parichay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal
PublisherMahavir Granth Academy Jaipur
Publication Year
Total Pages269
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth, Biography, & Story
File Size4 MB
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