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भट्टारक रत्न कीति एवं नुमुदचन्द्र : व्यक्तित्व एवं कृतित्व
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दोहा-पुण्य नारो रे मारिणया, पुण्य Vल संसार ।
पुण्ये मन बन्चित मिले, रूप रंगीली नारि ॥१३ ।। पाप न कीजे पाडुया, पाग यकी दुख थाय ।
पापी भार्यो प्राणियो, च्यारे गति में जाय ॥ १४ ॥ चौपाई-वंदो विमल बिमल गुणवंत ।
जेहना घरग नमें नित संत ।। साठि सराशन देहल करयो।
हेम वरण मुर्गात बह रहयो । १५ ।। समरो देव दयान अनंत ।
अवर न कीजे सोटा तंत ।। देह शराशन बे पंच बीरा ।
हाटक सरखी छवि नवि रीस ।। १६ ।। धर्मनाथ ने मन मो धरो ।
जिन शिवरमणी हेला परो ।। श्रीस पनर धनुष सोहंत ।
हेमवरण सुर नर मोहंत ॥ १७ ॥ शांतिनाथ नू समरो नाम ।
जिन अपात टाले से टांग ।। विसुरणां बीस शरासन वैर ।
हेम वरण जागो नवि फैर ॥ १ ॥ कुथु जिनेश्वर करूया कंद ।
__ जेहना चरण नमे सुर वुद ॥ भनुष बीस पनर तन कायः
हेम बरण सुर नर जस गाय ।। १६ ।। समऱ्या गिद्धि करे अरनाय ।।
__मुगति पुरी नो जे जिन साथ ।। धनुष श्रीस ऊचा अति भला ।
गात कुभ नरषी तनु कला ॥ २० ।। मल्लि जिनेश्वर महिमा घणो ।
जह टाले फेरो भवतंगों । कच अग धनुष पंच बीस ।
हेम वरण सेवो निषा दीश ॥ २१ ।।