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________________ भट्टारक रत्नकीति एवं कुमुद चन्द्र : व्यक्तित्व एवं कृतिस्त्र उठ्या कुपर कोडामणा, करो सुख डली सार । वेसी सुवर्ण वेसणे, मेहलू मेवा मीठा मनोहार ॥ ७ ॥ खारिक लह लेलानवां दाल बदाम प्रखो। पिस्तां चारोली भली, खाता मनस्यु थाये घा' कोड ।। ८ ।। घेवर फीरणी वाजली, सखर जानेबी जाणि । मोदकने तल सांकली चण्या साकरिया रस खाणि ॥ १ ॥ एम नाना विध सूखी, करी उठ्या नाभि मल्हार । खाधा पान सुरंगस्यु, मरुदेवी करे सिणगार || १० || झिरणो झगो विराजतो बांधी घटी पागद । नवल पछेडी सोमती मोह मोलियो सुरनर वृद ॥ ११ ॥ काने कुडल लहकता, हार हैए झलकत । कारदोरी कडि उपतो, पगे धुघरडी घमकंत ।। १२ ।। बाजू बंध सोहामणी, रावडली मनोहार । रूपे रतिपति जीतीयो जाने कुमुदचन्द्र वलिहार ।। १३ ।। (५२) चौबीस तीर्थकर देह प्रमाण चौपई मावि जिनेश्वर प्रणमो पाय । सुगला धर्म निवारण राय ॥ धनुष पंचसे उ'च शरीर । कनक कांति शोभित गंभीर ॥१॥ अजित नाथ प्राये सुर लोक । जनम मरण माटाले शोक ।। धनुष प्राए लेने पचास । च पणे हाटक सम भास ॥ २ ॥ संभव जिन सुख प्राये बहु।। अहि निमा सेव करे ते महू ।। धनुष च्यारसे दे प्रमाण । हेम वरण शोभे वरणाय ॥ ३ ॥ अभिनंदम ममता दुस्ख टले । मन नां वंश्रित संघ "..." || ....... ... उठते मंडित काय । हेग कांति दोठा सुख पाय ॥ ४ ॥
SR No.090103
Book TitleBhattarak Ratnakirti Evam Kumudchandra Vyaktitva Evam Kirtitva Parichay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal
PublisherMahavir Granth Academy Jaipur
Publication Year
Total Pages269
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth, Biography, & Story
File Size4 MB
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