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मट्टारक एवं रत्नकीर्ति सुमुदचन्द्र व्यक्तित्व एवं कृतित्व
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भूत प्रेत पिशाचर पीडा, वाध घर नवि अडकेरे। पास प्रभू तणु नाम जपता, नदि हैड़े दुख वड़के रे ॥ १२॥ सघन विधन वेगलड़ा जाये, नवि' साणे बहु पाणी रे । कुमुवचन्द्र कहे पारा पसाई, राचे गुगति महाराणी रे ।। १३ ।।
। ३८ ) दीपावली गीत याज दीवालि रे बाई दीवाली. तो पहेरो नव रंग फालि । धन-धन गिल तेरसि नो दिन. पूज्य धारा चानी रे ॥१॥ गाऊगी तब धावो गोरने, मोतीयड़े परी थाली । चरचो अंग चतुर सोहामणी, चरण कमल सु पखाली रे ।। २॥ बुद्धि सिद्धि प्रापी अति ममी, कालि च उदसि काली । प प हरग लीजे ते पोसो मननामल सहु टालि रे ।। ३ ॥ चउदशिनी पाछल ही राति, कर्म तणां मद गाली।। महावीर पहोता निर्वाण, अजरामर सुव शाली रे ।। ४ ।। गोतम गुरु वल दोवडलों, लोकालोक निहालि । सुरनर किंनर को महीन्यव, जय-जव रव देना ताली रे ।। ५ ।। तेज अमांस पग्व दीवाली, परठी भाक झमाली। घरि-घरि दीवदना त झलके. राति टीमे अजुवाली रे ॥ ६ ॥ पडवे राति जुहार पटोला, निरुडी मम चाली। श्री सदगुरुना चरण जुहारो, पामो रवि रद्धि माली रे ।। ७ ॥ बोजें हेजे द.रे ते भाविज वेहडली अति वाली । ए पाने पीहा जान्होता, आवो पायो रपे चालि रे || ८ || हास विनोद करे गृग नयगी. शशि क्यसी रूपाली । कुमुदचन्द्र नी कारिण मनोहर, मीठा अमिय रसाली रे ।।
याज दीवाली बाई दीवाली ||
राग बन्यासी गोत :
मकरस्यो प्रीति ज एक रूनि । एक करिन बेदन नवि जाणे, एक मरे विलखी ।। १ ।। जल विन मीन मरे टल बलि ने, जलने काई नहीं । बापियहां ने प्रिउ बिक रटता, जलघर जाय यही ।। २ ।।