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वाजित्र वाजता, अबर गाजता |
नरवधू नाचता, मनह रंगे || ५ ||
जिन गुण गावतां शुभ मन भावता ।
चिन्तामणि पार्श्वनाथ गीत
मुगति फल पावता, चतुर चंग ॥ ६ ॥
सुगन्ध सारगद, पाप ते नवि रहे ।
मन वाछित लह, कुमुदचन्द्र करो जिन भारती ॥ ७ ॥
( ३७ ) चिन्तामणि पार्श्वनाथ गीत बालो चन्द्रमुखी सखी टोली, पहेरो पटोलि चोलि रे । पूजिये पावन पास जिएसर, पीमीये सपत्ति बहोली रे ॥ १ ॥ सन्दर बासव रास कपूरे, वासित जलें जिन पूजीई । जप कोगे, पर यकी नवि बीहीजीए ॥ २ ॥ केरो राय रे ।
चन्दन केशर ने रसि चरमो त्रप्य भुवन
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पाप तो संताप टले सहू, अत पूज करो प्रभु आगलि, नव निधि उदह रतन श्रति रुवड़ा, जिम लहीं निजधामें रे ॥ ४ ॥
त्रिम मनि वंछित थायेरे || ३ | पंच परम गुरु नामि रे ।
श्रानंद रे ॥ ५ ॥ बोली रे ।
जाई जूइ सरवर से यंत्रे, कुंद कमल मचकु दे रे । चम्पक तरणी चम्पक लिइ चरचो चरण कूरदालि बडावर व्यंजन, पोलिय घोर पासलडी पकवान चढ़ाबो, रची रचना वर उली रे ॥ ६ ॥ दीवडलो अजू वालो रे झाली. प्रारती उतारे । प्रारतडी भाजे जिम मननी पाप तिभिर सहु वारो रे ॥ ७ ॥
सुन्दरी ससिबदनी प्रभु चरणे कृष्णागरड खेबोरे ।
पावन धूम शिया परिमलना छूटिये करमति सेवोरे ॥ ८ ॥ सखिय चढावो सारी रे | दाडिम प्रति मनोहारी रे ॥ & ॥
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कमरख कदली फल सोनारी, रायण करमदा बदाम बीजोरा जल चन्दन प्रक्षत वर कुसुमें, परु दीवली घूपे रे । फल रखना सू प्ररक्ष करो सल्ली जिम न पड़ो भव कूपे रे ।। १० ।।
इस अनूपम भाव धरीने, पूजता पास जिद रे । रोग शोग नवि ते श्रंगे,
न हुई को दस्यु
देव रे ।। ११ ।।