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________________ भट्टारक रत्नकीर्ति एवं कुमुदचन्द्र : व्यक्तित्व एवं कृतित्व १६ शील सलूणारे माणस सोहिये । विरण याभरणे रे मन मोहीये ।। प्रोटक मोहिये सुरवर करे सेवा, विष अमीसायर घल । कोसरीसिंह सीमाल थाये अनल प्रति शीतल जल ।। सापथ ये फूलमासा लच्छि घरि पाणी भरे । परनारि परिहरि शील मनि धरि मुगति बहु हेलावरे ॥ ६ ॥ स । ते माटई हुरे वालि भवीन । पागि लागी नेरे मधुर बचने चबू । प्रोटक : वचन माहरु मानिये परिनारी यी रहो वेगला । अपवाद माथे चढे मोटा, रंक थइये दोहिला ॥ धन धान्य ते नर नारि जे हठ शील पाले जगतिलो । ने पामसे जस जगत माहि, कुमुदचन्द्र समुज्जलो ।। १० ॥ गीत राग धन्यासी : प्रारती गीत करो जिन तणी प्रारती, पण सुख बारती। विघन उसारती भविक तणा ॥ १ ॥ याम बर सोहती, सकल मन मोहती । पशु भव्य मोहती, तेज पूजा करो ॥ २ ॥ पुण्य प्रजू पालती, पापतिमर टालती । अमर पद पालती, मण प्रयासे ।।३।। भव भय मंजती, भाव टिंगलती। सुरमन रंजती, राज्य मानती ॥ ४॥
SR No.090103
Book TitleBhattarak Ratnakirti Evam Kumudchandra Vyaktitva Evam Kirtitva Parichay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal
PublisherMahavir Granth Academy Jaipur
Publication Year
Total Pages269
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth, Biography, & Story
File Size4 MB
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