________________
१६८
पद एवं गीत
हाल:
जे पति वाह तोरे वचे पापिणा ।
परस्यु प्रोते रे रांचे सापिणी ।।
पोटक:
सापिणी सरखी वेरिण निरखी, रख्ने शील पकी चले। माखिने मटके अंगि लटके देव दानव ने छले ।। मांडकालि प्रति रसाली, वाणि मीठी सेलही। साभली भोला रखे भूले जाण जे विष बेलडी ॥ ५ ॥
हाल:
संग निवारो रे पर रामा तो।
शोक न कीजे रे मन भलवा घणो ॥
प्रौटक:
शोक स्याह ने करो फोकट, देखा छू परिण दोहिलू । क्षण सेरीइ क्षण मेडी. भमता न लागे सोहिलो ।। उसास नई नीसास प्रावे, अंग भाजे मन भमे । वलि काम तापे देह दाझे अन्न दो नवि गमे ।। ६ ॥
हाल:
जाय फलामो रे मनस्य कल मले ।
उदमादो थह रे अलन फराल लवे ।।
नोटक:
तेलवे अस्लल फस्नल अजागो मोह गहेलो मनि डरे । महा मदन बेदन कठिन जाणी मरण वारु वडे | ए दश प्रवस्या काम केरडी कंत काबा ने दहे। हम चित जारणी तजो रांणी पारकी जिम सुख लहे ॥ ७ ॥
दाल:
परनारी ना पर भथ साभलो।
कंता कीजे रे भाव ते निरमलो ।।
निरमले 'भावे नोह समझो, परवा रस परिहारो। पापियो कीचक भमिसेने, शिला हेठलि सांभलो । रण पड्यां रावण दो मस्तक र बड्या ग्रन्थे कह । से मुझपति दुख पुज पाम्यो, अजस जग माहि रहो ॥ ८ ॥