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भट्टारक रत्नकीर्ति एवं कुमुदचन्द्र : व्यक्तित्व एवं कृतित्व
२/कमठ माहामद भंजन रंजन, भविक चकोर सुचन्दा । १/पाय तमोपह भुवन प्रकासक उदित अनूप दिनंदा ग्राजु०।। २ ।। भुषिज दीजिपति दिनुज दिनेसर सेवित पद परवेंदा । कहन' कुमुदचन्न होस सबे सुख, देखत वामानन्दा ॥प्राजु०॥ ३ ।।
राग भैरव:
बम जय आदि जिनेश्वर राम, जेहने नामे नव निषि थाय । मन मोहन मरदेवी मल्हार, भवसागर उतार पार ॥जय०॥ १ ॥ हेमवरण अति सुन्दर काय, यरसण दीठे पाप पलाय ||जय० ॥ २ ॥ युगमा धरम निवारण देव, सुपर किंनर सारे सेद ॥ ३ ॥ दीनदयाल करे दुख दंद, कुमुद चन्द्र बादे भारद ॥जय०॥ ४ ॥
राग भरन चन्न वरण वांदो चन्द्रप्रभ स्वामी रे।
मन्द्रवरण पंचम गति पामीरे ॥ १ ॥ मोह महाभट मद दल्यो हे लार ।
काम कटक माहि कीधा जेणे भेला रे ।। २ ।। विघन हरण मन वांछित पूरे रे।
समऱ्या सार करे अध चूरे रे ।। ३ ।। घोघा मण्डन चन्द्रप्रभ राजे रे ।
जेहनो जस जग माहि वारु गाजेरे ।। ४ ।। परम निरंजन सुर नमे पाय रे।
कुमुदचन्द्र सूरी जिन गुण गाय रे ॥ ५ ॥
राम कल्याण:
(१२) जन्म सफल भयो, भयो सुकाज रे। सन की तपत टरी सब मेरी, देखत लोप पाम प्राजरे जम्मा १ ॥ संकट हर धीपास जिनेसर, वदन विनिजिते रजनी राज रे ।। अंक प्रनोपम अहिपति राजित, श्याम वरन भव जल धिपान रे ।। २॥ नरक निवारण शिवसुख कारण सब देवनी को हे शिरताज रे । कुमुदचन्द्र कहे वांछित पूरन, दुस्ख चूरन ही गरीबनिवाज रे || ३ ॥