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पद एवं गीस
राग सारंग :
सखी री अब तो रह्यो नहिं जात ॥ प्राणनाथ की प्रीत न विसरत, क्षुनु क्षुनु क्षीजन गात ।। सखी री० ॥११॥ नाहि न सूख नहीं तिस त, परहि माहि पुरयत। मन तो उरम रह्यो मोहन सु सोबन ही सुरझात ।। सस्त्री री ||२|| नाहि ने नींद परती निनिवासर होत बीसुरत प्रात । चन्दन चन्द्र सजल नलिनीदल मंद मरुत न सोहात !। सखी री || मह प्रांगन नु देख्यो नहीं भावत दीन भाई विललात । विरही वाउरी फिरति गिरि, गिरि 'लोकन ते न लमात ।। सखी री॥ पीउ बिन पलक कल नहीं जीसन रुचत रसिक जु बात ।
कुमुदचन्द्र प्रभु सरसदरस कु नयन चपल ललचात || सखी री || राग सारंग :
(७) किम करी राम्नु माहारु मन्न ।
जिन तजी गयो रे सेसा वन्न ।। मयण वृथा मुन्हे अन्न न भावे, सामलिया वीण झूरू । आसडली मुन्हें नेम मलानी कोण जुगति करु पुरु ।। किम ।।१।। भूषणभार कर अति अंगे, काम कथा न सहाबे। कुमुदचन्द्र कहे लेम करो जेम, नेमि नवल घर पाने || किम० ॥ २ ॥
राग मलार:
पालीरी पा वरला रित प्राजु पाई। पावत जात सरली तुम की तह, पीज प्राव न सुध पाई ।।प्रा०।। १ ।। देखीत तस भर दादुर घरकार, बसत हे झरलाई । बोलत मोर पपईया दादुर, नेमि रहे कत छाई । प्रा०|| २ ।। गरजत मेह कूदीत अरु दामिनि, मोपे रहो नहीं जाई। कुमुदचन्द्र प्रभु मुगति बधुसु, नेमि रहे वीरमाई मा०॥ ३ ॥
राग मिदनारायण:
प्राजु में देखें पास जिनेन्द्रा ।। टेक ।। सावरे गात सोहामनी मूरत सोभित सीस फलंदा ॥आजुन १ ।।