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श्री महावीर ग्रन्थ अकादमी-एक परिचय
प्राकृत एवं संस्कृत के पश्चात् राजस्थानी एवं हिन्दी भाषा ही एक ऐसी भाषा है जिसमें जैन आचार्यों, भट्टारकों, सन्तों एवं विद्वानों ने सबसे अधिक लिखा है । वे गत 100 वर्षों से उसके भण्डार को समृद्ध बनाने में लगे हुए हैं। उन्होंने प्रबन्ध काम लिखे, खण्ड काम लिसे, चरित लिखे, रास, फागु एवं वलियां लिखी। और न जाने कितने नामों से काव्य निम्न हिन्दी शान्ति मार को समद्धना: राजस्थान, मध्यप्रदेश, उत्तर प्रदेश, हरियाणा, एवं देहली के सैकड़ों जैन शास्त्र भण्डारों में जन कवियों की रचनायों का विशाल संग्रह मिलता है । जिसमें से किन्हीं का नामोल्लेख राजस्थान के जैन शास्त्र भण्डारों की ग्रन्थ सूचियों के पांच भागों में हम है । इधर थी महावीर क्षेत्र से संथ सूचियों के अतिरिक्त, राजस्थान के जन सन्त व्यक्तित्व एवं कृतित्त्व, महाकवि दौलतराम कासलीवाल तथा टोडरमल स्मारक .वन से महापंडित टोडरमल पर गत कुछ वर्षों में पुस्तके प्रकाशित हुई हैं लेकिन हिन्दी के विशाल साहित्य को देखते हुए ये प्रकाशन बहुत थोहे लग रहे थे । इसलिये किसी सी संस्था की कमो खटक रही थी जो जैन कवियों द्वारा निबद्ध समस्त हिन्दी कृतियों को उनके मूल्यॉकन के साथ प्रकाशिप्त कर सके । जिससे हिन्दी साहित्य के इतिहास में जैन कवियों को उचित स्थान प्राप्त हो तथा हाईस्कल एवं कालेज के पाठ्यक्रम में इन कवियों की रचनामों को भी कहीं स्थान प्राप्त हो सके। स्वतन्त्रता संस्था की योजना--
___ इसलिये सम्पूर्ण हिन्दी जन कवियों की कृतियों को 20 मागों में प्रकाशित करने के उद्देश्य से सन 1977 में श्री महावीर ग्रन्थ भकादमी नाम से एक स्वतन्त्र संस्था की स्थापना की गयी | साथ में यह भी निश्चय किया गया कि हिन्दी कवियों के 20 भागों की योजना पूर्ण होने पर संस्कृत, प्राकृत एवं अपभ्रश के आचार्यों पर भी इसी प्रकार की सिरीज प्रकाशित की जावे । जिससे समस्त जनाचार्यों एवं कवियों को साहित्यिक सेवाओं से जन सामान्य परिचित हो सके तथा देश के विश्व-विद्यालयों में जैन विद्या पर जो शोध कार्य प्रारम्भ हुया है उसमें और भी गति आ सके।
श्री महावीर मन्य अकादमी की हिन्दी योजना के अन्तर्गत निम्न २० भाग प्रकाशित करने की योजना बनायी गयी ।