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भट्टारक रस्नकोति एवं कुमुदचन्द्र : व्यक्तित्व एव कृतित्व
श्रावण मास :
फागुण केस फलियो नरनारी रमे वर फाग जी ।
हास विनोद करे घरणा, किम नाहें धर्मो वेराग' जी ॥ १० ॥ चैत्र मास :
कोयलड़ी टूहका करे, फल लहे अम्बा डाल जी ।
चैत्रे चतुर चित चालिये, किम तजीइ अबला काल जी ।। ११ ।। वैशाख मास :
वैशाखें तड़को पछे लयु, दाझे कोमल काय जी।
ते मादियाउ धारिये एह योवन्या दिन जाय जी ।। १२ ।। जेठ मास :
नीट जेठोडी नथि रहे, धरि पबियडा सहु आवे जी । नेमि न भाव्या क्रिम कर, मुन्हें धरियण न सुहाये जी ॥१३॥ उजल जिन जर मल्या, रह्या ध्यान विषय चितलायजी। जय जय रत्नकीर्ति प्रमु, सूरी कुमुदचन्द्र बलि जाय जी ॥ १४ ।।
{ ४ ) नेमिश्वर हमची श्री जिनवाणि मनि घर रे, नापो वचन विलास । नेमिकुमर गुण मायस्यु तो, हैडे धरी उल्हास !| हमचडी ।। हमचड़ी हलि हेलि रे, घरि करिये नवरंग केलि । राजमती वर नमिकुमरते, गातां मनि रंग रेलि रे ।। १ ।। हमची हमची सहिय साहेली, पाचो करि सिंणगार । समुद्र विजय सुत रंगे माइये, जिम तरीये संसार रे ॥ २ ॥ सोरठ देश सोहांमयो रे, वन बाडी पाराम । गोधन कलि करता दीसे, रधिया रुहा गांम रे ॥ ३ ॥ निरमल नीर भर्या ते सरोवर, फुल्यां कमल मपार । परिमल ना लीघा ते भमरा, उपरि करें गुजार रे ॥ ४ ॥ सुन्दर सोहे सारडा रे, बगला बेठा टोले। हंसा हंसी केलि करंता, चकवा चकवी बोले रे ॥ ५ ॥ वाटलडी रलिया मणी रे, पंथियडा पंथि पाले। सयत सीस सोहामणी तो, अगमतुं नहीं चाले रे ॥ ६ ।। से मांहि नवरंगी नगरी द्वारयती वर ठाम । गढ मढ मंदिर मालियां, तो निरखंता अमिराम रे ॥ ७ ॥