________________
भट्टारक ररनकौति एवं कुमुदचन्द्र ; व्यक्तित्व एवं कृतित्व
१७३
रचनाकाल एवं रचना स्थान :
संवत सोल अठ्योतरे ए॥ मा ॥ मास प्राषाढ़ धनसार ।।२२।। उजली बीजरनीयां मरीए । मा ।। अतिभलोते पाशिवार || सु ॥२३॥ लक्ष्मीचन्द्र पाटें निरमलाए । मा ।। अभयचन्द्र मुनिराय ॥ सु ।।२४।। तस पदे अभयनन्दि गुरुए ।। मा ॥ रत्नकीरति सुभकाय ॥ सु ॥२५॥ कुमुदचन्ने मन उजलेए ।। धोधा नगर मझारि ॥ सु ॥२६॥ रिपन विवाहलो कोषलोए ।। मा ।। सीखसेजे नर नारि ।। सु ॥२७॥ तेहने घरे पाणंदह स्येए ॥ म! ।। पोहोचसे मनतणी प्रास ॥२८॥ स्वर्ग तणा सुख भोगविए । मा || पांमसे मुगति विलास ।। सु ॥२८॥
इति ऋषभ विवाहलो समाप्त ।