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ऋषभ विवाहलो
नसी हाल
तपस्या
च्यार हजार राजस्युए, मास्हंतो लीधलो संयमचार। सुणे सुन्दर, लीधलो संयमभार || १॥ राज मुक्युवरा' लोकनुए ॥ मा ॥ सफल कीयो श्वतार || सु ॥ २ ॥ प्रावीणा इन्द्र पाणंद सुए || मा ।। सुर करे जय जयकार || सु ।। ३ ॥ जय जग जीवन जग धणीए |मा ।। जय भय सागर तार || सु॥४॥ श्रीजु कल्याणक तपत तणुए । मा ।।
करि गया हरि सुरलोग ॥ सु ॥ ५॥ संयम लेइ छमासनोए ॥ मा || लीघलो स्वामीये योग ।। सु ॥ ६ ॥ पारणें भामरें उताऱ्याए । मा ।। कोइ न जाणे प्राचार | सु ॥ ७ ॥ इम करतां छह महीना मयाए । मा ।। नहीं मलें शुद्ध माहार ।। सु।। || एकदा द्वेचरी ने गयाए । मा । श्रेयांस राबने धामि ।। सु ॥ ६ ॥ प्रांहारनी प्रगति दीठी भली ए, तिहां रहा जिभुवन स्वामि । एक बरसें कर्ये पारणु' ए, ईक्षुरस प्रमीय समान ॥ १०॥
भाहार
लेइ माहार जिनवरे कर्यु ए ॥ मा।। रुयडलुपक्षयदान ।सु ॥११॥ श्री जिनवर पछे वने गया ए ॥ मा | योग लीयो अणफाल ।। सु ॥१२॥ बार प्रकारे तर करे ए ।। मा || जिम माहारनु यू गति दीठी ॥ १३ ॥ तिहो रह्या त्रिभुवन स्वामी सू टल' कर्म जंजाल ।। १४ ।। ध्यान घरे अति नीमलुए ।। मा । प्रचलमन मेरु समान || सु ॥ १५ ॥
कैवल्य प्राप्ति
घातीया कम्मनो क्षय करीए ॥ मा ।। अपनु केवल ज्ञान ।। सु ॥१६॥ समोसरण अमरें 'रच्युए ॥ मा || बार सभाने सोहंत । धर्म उपदेश दे उजलोए । मा || सुरनर चित मोहंत ।। सु ॥१७॥
निर्वाण
विहार करीने संबोधायाए ॥ मा ।। मव्य प्राणी तणा व ॥ सु ||१८|| प्रबल अष्टापदे जाइ चढ्याए ।। मा ।। केवली प्रादि जिनेंद्र ।। सु ॥१६॥ तिहां जई स्वामीयें टालीयुए । पाकता कर्म नु नाम ।। सू ॥२०॥ निर्वाण कल्याएक सुर करु'ए ।। मा || पामीया मुगति वर ठाम ॥ सु ।।२१।।