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________________ १६८ ऋषभ विवाहलो दूध पाक चरणा सकरीया, सारा सकरपारा कर करीया । कोटा मोति थमोदक लावें, दलीया कसमसा भावे ।। १३ ।। प्रति सुरवर से बरु सुन्दर, श्रारोगे भोग पुरन्दर । श्री पापड़ मोठा तलीया, मुरी प्राला प्रति उजलिया ॥ १४ ॥ सीरे सरसीय राई दीघी, मेल्हे के अथाये कीधो । श्राप्यां केर काकड़ स्वाद लागे लिंबू जमतां जीभ रस जायें ।। १५ ।। नीलू मातीला छम काव्या, मूकी तेल भरी कम काव्या । लांबी चीरी करीने मोल्यां ॥ १६ ॥ रसनाइ भयो रसलीषो । श्री सोड़ां धणु करो खोल्या, रूडो राइये वधारते दोषो भगी श्रादाल्हो लबधरी, जमतां फली लागे सारी ॥ १७ ॥ वृताकनु शाक समा राई तुम धरे हहि वास्तू' । 1 लाचे सेवनु माई सटके, मांगा करतां नामें श्री मांडा मोटी मोठि क्षीर खाँड खोबा भरि भूके लेखे ।। १८ । खलके, भय डाबरिया ते झलके । पाली, जमे रसिया झबोलो भबोली ।। १e ती नेहमी वांकटाल्यो, मम गमते बड़े श्राक वाल्यो । लापसीये मन ललचाये, धारी पूरीयें नृपति न बायो ॥ २० ॥ भोग कमोनो र जीरा साल सुगंधतो पूर चोखी दाल सुव परिनी सोहे, टून सरषी पीली मनमोहे ।। २१ ।। वारु बाट राईत मतमतां, कढ़ी मांहि मरीचमचमतां । पाँका कूट जीरा सुं बघारयां, बीजां शाक ते भागलू हास्यां ॥ २२ ॥ सथरां वंही कातली मालां, बोलुया मोहि लवण जीरालः । दुध कढी प्रचलाणी भरीया, गले घट घट ते उत्तरीयां ॥ २३ ॥ चलु लोघांसह साये, मुख शुद्ध करी सली हाथ । श्राव्या मांडवे साजनु हसता. वारें बारे वारण ते करता || २४ ॥ खेर सार सोपारी ते रंग, पानएलची सखर लविंग । महि मुक्यू कपूर रास जिन प्रावे मोटे स्डो वास || श्राद्ध अनुम कीधी, नाभि राजायें प्राग्यना दीवी || ढा || २५ |
SR No.090103
Book TitleBhattarak Ratnakirti Evam Kumudchandra Vyaktitva Evam Kirtitva Parichay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal
PublisherMahavir Granth Academy Jaipur
Publication Year
Total Pages269
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth, Biography, & Story
File Size4 MB
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