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________________ भट्टारक एवं रत्नफीति : कुमुदचन्द्र व्यक्तित्व एवं कृतित्व पांचवीं डाल हवि साजन सह नहींतरीमा प्राध्या परवारे पररुरीया । इन्द्र प्राध्या तेध सप्त सता, सूर गुरुने साथे ससा ॥ १ ॥ विवाह मण्डप : पावी इन्द्राणी तरनारी, करे हास विनोद ते मारी। चारु मण्ड़प जन मन मोहें, बहू मूल चन्दु रुया सोहे || २ ॥ टोडे तलीमा तोरण ते लहे के, हेम यंभ तेजें बहु मलके । वेदी वारु करीने समारी, चोरी चित्र महा मनोहारी ॥ ३ ॥ दीशे चारु मोतिनि माला नाना रवणनो झाक मसाला । रभा रोपि मण्डपने प्रागलि, पवने फरके ध्वज अवलि ।। ४ ।। हवे जमणवार सांमल ज्यो, चित देह उरमा लोमा करज्यो । पोल्या घोषा कंचोले भरीया सकटं बासह नोह्र वरीमा ।। ५ ।। भांगणे मण्डप सुविशाल, रि च्यार पासे पटशाल । तिहां चतुर सोहासपी नारो, मांड्यां बेशरणां ते मह हारी ।। ६ ।। मोटा पाटला नहीं डग ङगता, सोहेते कीया वेपासे लगता । मांडी पाडणी रूपा केरी, थाली बावन पलनीसुनेरी ।। ७ ।। मूक्या रजत कंचोला पाणी, सोहे सखर सुनानी चलाणी । चारु विनय करि तेडाबीजे, चालो चालो असूरन कोजे ।। ८ || देव पूजीया प्रथम अंघोली, पाव्यु साजनु सहमली टोली। घर चित्र पीसाम्बर पेहेरी, हाथे भारी सोहे रूपेरी ।। पग धोई करीन लगते, बेट' साजन ते यथा गुगतें। ध्यार पीज भली परि बेठी, श्रीसवामि पदमनि पेठी ।। १०॥ विविध प्रकार के स्वादिष्ट व्यंजन : पाप्यां हाथ परयालषा नीर, प्रीसे नारी नवल पेहेरी धीर । सांजां षांजा ताजा घी गसता, झोणो फीणी गेठा परिमलता ।। ११ ।। देल्लीहे समीहे इट्ठ, हीसे, वेसरणीये जलेनी प्रीसे । रदि लागे घेवरने दीठा, कोलहापाक पतासा मीठां ॥ १२ ॥
SR No.090103
Book TitleBhattarak Ratnakirti Evam Kumudchandra Vyaktitva Evam Kirtitva Parichay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal
PublisherMahavir Granth Academy Jaipur
Publication Year
Total Pages269
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth, Biography, & Story
File Size4 MB
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