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भट्टारक रस्नकीति एवं कुमुदचन्द्र : व्यक्तित्व एवं कृतित्व
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आणीया जिन जी इन्द्राणीइए, पापीया इन्द्र तें हाथि । नमो ॥ ५ ॥ इन्द्र उसंगे बेसारीयए, चामर छत्र सोहत । नमो० ॥ ६ ॥ प्रागीले अमर विलासनीय, गायती परीय प्राणाद । नमो० ॥ ७ ॥ धवल मंगल बहु मंगल गावतीय, बाजता काजिम कोडि । नमो ॥ ८ ॥ मेरु शिखरे पषरावीयाए, कोषलु जनम विधान | नमो० ।। ६ ॥ क्षीर सागर तरणे जले भरयाए, कनक कलशा सुविसाल । नमो० ।। १० ।। जिन प्रभु उपरि ढालीयाए, नहवण करयु मनरंगी ॥ नमो० ॥ ११ ॥ जय जयकार अमर करे ए, दोधलू वृषभ जी नाम || नमो० ॥ १२ ॥ अमल अंबर मणि मण्डनेए, मचीये करो सणगार || नमो० ॥ १३ ॥ स्प भनपम पेखतीए, नयण नुपति नर्षि थाय ॥ नमो० ॥१४॥ जन्म महोलय हरी करीए, हाडलें हरष न माय ।। नमो० ॥ १५ ।। मेरु थकी ते पाछा ल्याए, प्राविया जिनपुरी चन्द्र ॥ नमो० ॥ १६ ॥ जिन प्रभु जननी ने पापीयाए, स्तुति करी गया सुरराम ।। नमो० ॥ १७ ॥ जनम महोछव जिन तगोंए, हरषीया सूरि कुमुदचन्द्र ॥ नमो० ॥ १८ ॥
हाल तीन
बाल क्रीडा
प्रावो रे जोवा जइये, सखि मरुदेवी मल्हारे रे । गुण सागर रलिग्रामरो, ए विभुवन तारणहाः रे ॥ १ ॥ सो भूरज सो चांदलो, स्यो रतिराणी भरतारे रे । सुर नर किनर मोही रखा,
काई रूप अनोपम सार रे ॥ २ ॥ सोहामणि सुर सन्दरी, जिन हरषधरी इलरावे रे । भामरणडलि भामिनी, काई गीत मनोहर गारे । सो० ॥ ३ ॥ रमत करावें रंगस्यु सुरनारि के सिगारे रे । दे प्राशीस से रुपडी, तु जय जय जगदाधारे रे ॥ सो० ॥ ४ ॥ दिन दिन रूपे दीपतो, कांई बीज तणो जिम चन्दरे । सुर बालक साथे रमें, सह सज्जन मनि माणदरे । सो० ॥ ५ ॥ सुन्दर पचन सोहामणां, वोले बादपठो बाल रे ।। रिम झिमवाजे धूधरडी, पगे बाले बाल मरालरे ।। सो० ॥ ६॥