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भट्टारक रत्नकीर्ति एवं कुमुदचन्द्र : व्यक्तित्व एवं कृतित्व
स्वप्न वर्शन : एके समे सुन्दरी पाछली सखी शरवरी,
सोलसपन रूडा नीरखती ए। पहिलोए गजबर मदझर गिरिवर.
सरषों देवीने मनि हरपतीए ॥ ६ ॥ बीजे धुरंधर सबल चपलतर अक्ल नवस त मनोहरए । सहज सोहामणो पामीए त्रीजले हरी बरए ॥ ७ ॥ हसित पदमासने जेठी हस्त पदने सोहए। सपन चौथे लाछि दीठी जगत जन मन मोहए ।। लहिकति लांबी फूल माला भबर गुबारव करें।
पांच में परियल मनमगाटमें नाशिकाने सुख करे ॥ ८ ॥ छन्न रजनीकर अमीझर सुखकर सोल कलाकरः छाजतोय । कुमुद विकासए दश दिशा भासए, अहेव रजनो राजतोय ।। उगतो दिनकर सकल तमोहर कमल सोहाकर सातमेंए । मछ युगल जलमांहि रमें झल झलते अवलोकिनु पाठमोए ।। ||
ग्रंभ पुरा कलश नवौ सरोवर दशम भर । लहे लहें लहरि नीर निरमल, कमल के पार पीजर ।। लोल जल कल्लोल गाजे, वारि राशी अग्यारमें । वर हेम धनी रयराजीडनु सिंहासरण ते बारमें ॥ १० ॥ देव विमानए चित्र निधानए,
रचना मनोरम तेरंमेए । नाग भुवन जन जोतां हरे तनु मन,
__ समणे सोहामगे चउदभेए ॥ ११ ॥ राशी रतन तणी पंच वरण गणी,
जगमग करतीए पनरमेए । अनल प्रघमए तेजे धा धूमए.
च शिखायें दीने सोलमेए ।। १२ ।। मरुदेवी जागी प्रिय कह गद सपन फस' पुछू बली । नरपति कहे तब पुत्र जिनवर हसे मनगों होती रली ।। समिली राणी सफल जारणी मलयती था कि गइ । नाना विनोदे दिवस जांता न जाणे हफ्त थइ ।। १३ ।।