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________________ १६० देह चढीं नाना चिव बल्ली | नख सुभिल्ल घसें ते भल्ली । विष विकराल भुजंग भयंकर । लचित गल कंदल अति सुन्दर ।। १४६ ।। कान विषय माला ते कीषा | वरसाले बहु बीज बूके सघन घनाघन अम्बर गाजे लांबी भइ मांडीने दरवे । तो भरत बाहुबली खन्द पंषीय बहुपरे पण ध्यान थकी महेलो बाजे । माता मोर करे रंगयेनं । खलबल नीर बहेते कोतर भर-भर बरसे रात अंधारी जेरे तो वर चित्र प्रायें । तं कभी बाहेर चोमासें ॥। १५० । झंझावात दादुर जल देषीनें हरषे ॥ १४८ ॥ बांपीयडो बोले पीज बोलं । भरीयां वारि सरीवर दुस्तर ।। १४६ ।। भूरे विरही नर नवनारी | जे वनचर जाभी टालें | नीलू वन न रहे हिम साढें । वि सूये बेसे संर नविक नदि पेरे अम्बर ।। १५१ ।। जे सूतो निणि ललनां संगें । ते शीयाने सहे हिम अंगें । जे षड़ रस नव भोजन करतो ते वनवासी अनशन धरतो ।। १५२ ।। प्रति उन्हाने लू बहु बाजे । तरस थकी नवि पायो भाजे । दाझे देह तपे रवि मस्तक । तो पण न चले बोल्यु पुस्तक ॥। १५३ ।। त्रय काल की तप दुर्द्धर । तो पण मान न थाये जर्जर | वरस दिवस पूगाते जे ह्न । प्राबी भरत नम्यो पदते ॥ १५४ ॥ जंपे भरत विनय मनें श्रांणी को मान हुईयासु जांणी । मुझ राखा पोहोवीतल केता | हवा हसे नेले अरण देता । १५५ ।। तु मुनि मण्डन मझ मद खण्डन | जनमनरंजन भव कर करुणा करुणामय सागर । दुख दीघां । नवि चुके ॥ १४७ ।। भय तंजन | मुझ अपराध क्षमो गुण श्रागर ॥ १५६ ॥ मन थी शल्य तजो मुनिनायक । जिम प्रगटें केवल इम क्षमाषी चोल्यो नरवर । जग वेगें पोहोतो सुखदायक | कोशलपुर ।। १५७ ।। बाहुबली को केवल ज्ञान होना धरयुं ध्यान हुने मुभि ज्यांरे । केवल प्रकट भयुं ते त्यांरे । भाव घरी भवियरण सम्न्रोने । कर्म कलंक कला न दिॐ ॥ १५८ ॥
SR No.090103
Book TitleBhattarak Ratnakirti Evam Kumudchandra Vyaktitva Evam Kirtitva Parichay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal
PublisherMahavir Granth Academy Jaipur
Publication Year
Total Pages269
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth, Biography, & Story
File Size4 MB
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