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________________ भट्टारक. रत्नकीति एवं कुमुदचन्द्र : व्यक्तित्व एवं कृतित्व राग श्री राग : बंदेहं जनता शरएं। दशरथ नंदन दुरित निकंदन, राम नाम शिव मुख करनं ॥१॥ प्रकल अनंत प्रनादि अधिकल, रहित जनम जरा मरन। अलख निरंजन बुध मनरंजन, सेवक अन अभयत हसनं ।। २ ।। कामरूप कसना रस पूरित, सुर नर नायक नुत धरनं । रतनकीरति कहे सेवो सुन्दर भव उदषि तारन तरनं ॥ ३ ॥ राग श्री शग: (३३) कमल यदम करुणा निलयं ।। सिव पद दायक नरवर नायक राम नाम रघुकुल तिलयं ॥१॥ मधुकर सम शुभ अलक मनोहर, देह दीप्ति प्रतिमिर हरं । कजदल लोचन भवभय मोचन, सेवक जन संतोष करं ॥२॥ अघर विद्रम सम रक्त दिराजित, द्विजवर पंक्ति मौक्तिक कल नं । शीता मनसिज ताप निवारन दीत्रु बाहू रिपु मद दल नं ।। ३ ।। अमर खचर कर नायक सेवित चरण कमल युगल बिमलं । रतनकी रति कहे शिवपदगामी कर्म कलंक रहित ममलं ।। ४ ।। आवो सोहासरिए सुन्दरी बृद रे. पूजिये प्रथम जिणंद रे। जिम टले जनम मरण दुख दंद रे, पामीये पर र प्रानन्द रे ॥१॥ नाभि महीपति कुल सिणगार रे, कपडला मरेवी मल्हार रे । युगला धर्म निवारण ठार रे, करयो बहु प्राणी उपगार रे ।। २ ।। ऋण्य भुवन केरो राय रे. सुरनर सेवे जेहना पाय रे । सोहे हेम वरण सम काय रे, दरशन दीठे पाप पलाय रे ।। ३ ।। एक शतय नोलजस रूप रे, विघटचू दीठ त्य"हारे रूप रे ।। मन धरीमो बेराग अनूपरे, जे तारे भव कप रे ।। ४ ॥ श्री राग : श्रीराम गावत सारंग परी॥ नाचती नीलजसा रिषभ के यागे।
SR No.090103
Book TitleBhattarak Ratnakirti Evam Kumudchandra Vyaktitva Evam Kirtitva Parichay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal
PublisherMahavir Granth Academy Jaipur
Publication Year
Total Pages269
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth, Biography, & Story
File Size4 MB
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