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________________ ૪ राग रामश्री : ( ३० ) सधर वदन सोहमणी रे, गज गांमिनी हरिकी मृग लोचनी रे, सुधा रायल रति सम वीनवे रे, जीवन सुरिण सुरिण जिन यदुराय रे, चरि रं राग परजाउ गोत : पद एवं गीत गुण माल सम वचन रसाल रे || जिन यदुराय रे I चन्दन चन्द नवि गये रे ॥ नवि गये तर ते मात्र रे ॥ १ ॥ " दान दाडिम वीज शोभता रे, चम्पक वरण सेहि देह रे । नवि गमं सजनी निसी गरे । अधर विद्र ुम सम राजता रे, धरती नायस्युं बहु नेह रे || २ || कौर कोकिल बोल्यो नवि गमेरे, नोव गुथ्यो गमे केशकलाप रे । नव गये राग अलाप रे, नवशत करण ते नवि गमे रे ॥ ३ ॥ अन्न उदक निद्रा नोष गये, हास्य विनोद सह परिहसी रे, भमृत भोजन लागे विष रे ॥ ४ ॥ विरह दवानल हूँ वलौ रे, तु तो त्रिभुवन तर नाथ रे ॥ बलि वलि पाय पड़ी विनबू रे, मुन्हे राखो तुम्हारे पास रे ॥ ५ ॥ भोग भव भ्रमण कारण घणू रे, सुणि सुणि रायुल नारि रे । ते किम ज्ञानवंत सावर रे, तु तो ताहरे हृदय विचारि रे ॥ ६ ॥ प्रतिबोध सामलिये सुन्दरी रे, जइ लीधो गिरिनारि बास रे ॥ रतनकीरति प्रभु गुनिलो रे, पूरो पूरो मुझ मन आस रे ।। ७ ।। , ( ३१ ) नेम जो दयालुडारे, तु तो यादव कुल सिणगार रे । जग जीवन जगदाधार रे, तो करो द्वारी सार रे ॥ स्वामि अड वडिया आधार ॥ १ ॥ 7 हु तो हुती मंदिर राज रे में तो हरितु न जायु का रे । तु तो ग्राको अधिक दिबाज रे, हम जातां तुझनें लागु लाज रे ॥ २ ॥ कोणे लायो तुम मर्म रे, जे परणे बेसे कर्म रे । तेन जरिए संसार नो शर्म रे, हवे करेण क्षत्रिय धर्म ॥ ३ ॥ मन्हें इससे सनी तो साथ है, केहेस्ये हूं किम रहूं अनाथ रे, तु तो सकल साखय श्रानंद रे, तु नेली गयो किम नाथरे । तहमे देयो अन्तर हाथ || ४ || तो कमणा तरवर कंद रे । सुभ दोठडे मुज भांदरे हे रत्नकीरति मुरिंगद रे || ५ ||
SR No.090103
Book TitleBhattarak Ratnakirti Evam Kumudchandra Vyaktitva Evam Kirtitva Parichay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal
PublisherMahavir Granth Academy Jaipur
Publication Year
Total Pages269
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth, Biography, & Story
File Size4 MB
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