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भट्टारक रत्नकोति एवं कुमुदचन्द्र : व्यक्तिस्व एवं कृतित्व
ललदा मनिता तक श्रवन दोउ शिर ए खरी अमूल' हो । ललना कबरी शेष लजामरिण नागा शुक स्यु हो रहो ॥ ५ ॥ ललना वशन अनार अनोपम प्रघर अरुन परवार हो ।
ग्रीवा सारंग सोहबनी उर बबि भुगता हार हो ॥ ६ ॥ ललना नाभि मण्डल कटि केसरी गजगति लाज्यो मरार हो।
ललना जानूकदरी पद बीछये नूपूर कुणि तर सार हो ॥ ७ ॥ ललना अंग अंग छवि फदि कहा घरगु राजित राजुल बार हो ।
। उग्रसेन के मण्डपे ले रही वर कर मार हो ।। ८ ।। ललना मायो नीसान बजायते हरि हलधर सब साथ हो ।
ललना सारंग देखे दामरी, वज बोल्यो यदुनाथ हो ।। ६ ॥ ललनां सुरिंग सारचि कहे सामरो पसू बांधे बुण काज हो ।
सलना एति भोजन राजा करे, तुम कारन ए भाज हो ।॥ १० ॥ ललना जीव दयारु सामरो जान्यो अथिर संसार हो।
ललनां 'रय फेरी गिरिनार चरे, पाई राजुल' नारि हो । ११ ।। ललनां सुननो साह मुझ वीनती, में दुलनी तुम पास हो।। ललना करु नो द्यावरी साम रे, या मुझ पूरे पास रे ।। १२ ॥ ललनां रतन कीरति प्रभु इउ कहे एको ग्रहे अयान हो। ललनां सम्बोधी शिखरी गये हरे जीजीया धरी ध्यान हो ।। १३॥
राग मल्हार :
(२६) सुणि सखि राजुल कहे, हेडे हरथ न माय लाल र । रथ बैठो सोहामणो जीवन यादवराय लाल रे । मस्तग मुगट सोहामणी श्रवणे कुण्डल सार लाल रे । मुख सोभा सोहामणी, कांति तणों नहीं पार लाल रे ।। १ ।। गज गमनी मृग लोचनी, रामूल रूप अपार लाल रे। रतन जडित बाहे वहषा, कठि एकाबल हार माल रे ॥ रथ बैठाने निरखिमु', सारिग ने सो पास लाल रे । वचन सूणी रय चालियो, पूरयो गिरिनारि वास लाल रे ।। सखि कहे रायुल सुगो, नेम गयो गिरिनारि लाल रे । श्री प्रभग्न नन्दि पद प्रणमीने, रत्न कीर्ति कहे सार लाल रे ।।