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पद एवं गीस
कुण्डल अलक तिलक शुम शोभा, अधर विद्रम सम सोहे रे ।
दंत श्रेरिण मुक्ताफल मानू मीठडे वचन मन मोहे रे ।। ३ ।। बाहु सकोमल सजनी एहनी, केहनी उपमा दीजे रे । गज गति वाले मण्डप पावे, भामिनी भामण सीजे रे ॥४॥ हरिहर हलघर साथे पावे, मावे रुपही जान रे। सारंग नयनी सारंग वयनी गाये मनोहर गांन रे ।। ५ ॥ रथ प्रालि अप्सरा प्राणंदे छबे माटिक नाचे रे । रतनकीरति प्रभ निरखी निरखी त्याहा राजी मम रांचे रे ॥६॥
राग प्रसाउरी:
(२७) गोखि चड़ी जू ए रापुल राणी नेमि कुमर वर मावे । इस सुरंभ मचाचता कांइ प्रपछर मंगल गावे रे ।। १ ।। सही सोहासणि सुन्दरी तहले पहरो नव सर हार रे । नेह ने उठो नवरंग घांट रे रथ बेसीने प्रावे छ ।
माहरो जीवन जगवाधार ।। २ ॥ काई गाजते ने बाजते माहरो पीउ परगणेवा भावे ।
रांजुल हेडे हरषन्ती काई सखिस्यु रुडु भावे रे ।। ३ ।। काई तोरण पाव्या नेमि स्वामी, काई दीणे पशुनो पुकार रे।। रथवाली गिरिनारि गयो रतनकोरति नो माधार रे ॥४॥
राग सारंग :
नेमि गोत ललना समुद्र विजय सुत सामरे, यदुपति नेम कुमार हो । ललना शिवा देवी तन धन युग केहे अनोपम अवनि उदार हो । १ ॥ ललना मस्तक मुकट कनक जर्यो, रवि वनि कुण्डल कान हो । ललना नव शिख सोभा कहा वरणु',
जब यडियो हे व्याहान रे ।। २ ।। नलना हद नारद गयंद घरी गावत सर सघमार हो । ललना नाचत सुखी अंगना, नो सत जी सिंगार हो ।। ३ ।। ललना पंच रंग पहेनी पटोरी, गोरी राजुल गात हो। जलना नन्द बदनी मृग लोचनी; चिषु क बिन्दु सोहात हो ॥ ४ ॥