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________________ १३२ बारहमासा त्रोटक मुरण पणे वोलसरी वेलि जासू अनारिंग । पाडल परिमल कमल निर्मल करणेर केतकी संग ।। सहकार सुग्दर मोरीया बपोरीया ने रंग। एलची रहया अनेक वन श्रीफस संग ।। ते बन मा बलीय संवाये गाये गीत सनेह । फागण मारे पीउ विना होली दहे मुभा देह ॥ २० ॥ चैत्र मास पा मुझ देहे दुख दहे चैत्र नो मित्र रे । काई कंत रे माईत माहरे परहरी रे ॥ पा कोकिला कूजे सोरवर पालिरे । ___ काई बोले रे बोल सखी मुझ, सूडला रे ॥ या बली बन बसता सारसड़ां विख्यात रे विख्यात रे मात न लागे रूपडला रे ।। २१ ।। नोटक-- रुडा न लागे बन्न वेरी वाला ने वियोग । तिलक अंजन परहस्य दूरी करया सह भोग ।। चालया चि दिसे पंथि प्रेमें ताप तडका कीच । किम रह हूँ एकली तजीनोदश ने दीप ॥ उष्ण कालि ए उन्हाने काम सहे मुझ तन्न । कठिन यई नेंका जाये किम दहे माहरू मन्न ।। सोह सहसने प्राठ मांगे सारंग धरने साथि ! एक का मलखा मरिण ए मन कीजे निज नाथ ॥ मास पोस हूं नीगम बलिनीमगू षट् मास । जनमारो किम निगम रे चत्र मि रहो पामि ।। २२ ॥ बंशाण मास आ बैशाखे शाखा मोरि रसाल रे । विशाल रे काल उन्हाले जल घणी रे ।। पा मेडिइ मंदिर सुन्दर सोहावे रे। काई प्राचेरे गामथा पंथी धर भणी रे ।। प्रा मंदिर प्राव्या स्वामी सोहागा रे । सघाव्या रे पशू तणी करणा करी रे ।।
SR No.090103
Book TitleBhattarak Ratnakirti Evam Kumudchandra Vyaktitva Evam Kirtitva Parichay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal
PublisherMahavir Granth Academy Jaipur
Publication Year
Total Pages269
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth, Biography, & Story
File Size4 MB
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