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________________ भट्टारक रस्मेकीति एवं कुमुदचन्द्र : व्यक्तित्व एवं कृतित्व मुझ नयन थी निज नाह गयो रे रह्यो अंग शोष । कृपा करो मुझ मन धरो किम रहु पीउडा पोष ॥ १६ ।। माष मास - मा पोष महा मुझ दोहिले दिन राति रे । कोई माल रे जीवन' यदुपति किस सहे रे । मा जिम जिम पडे वन अति घन ठाई रे।। प्राधार रे उभो गिरि मां किम सहेरे ।। पा एरते महीपति चाप चहावी रे । काई यावी रे हेमन्त रित उभो रह्यो रे ॥ पा तो जी जो जइने जादव चालो रे । हिमालो रे सरस सीयालो यही गयो रे ॥ १७ ॥ त्रोटक नेह गयो निज नाष को प्रा भवे प्राधार । सुरिण घरणी वीनती घणी तर तणी राजुल नारि । पापणी आणी प्रेम प्रांगी मायो एक वार । पाचा बले यो तेह पगे रे जो ना वे विचार ॥ न करु' रे नाथ माहरा प्राणे तमसु श्रीति | साहीन राम्बु स्वामी तप ने नेह भर हो निश्चित ।। तेह भणी त्रिभुवन घणी वीनती सुरगो मुझ सोय । माह गासि पीउ पासि पुण्य विना नवि होय ॥ १८ ॥ फागुण मास-- मा पीउ विना प्राचयो फ फइने फाग रे । काई रागरे वसंत विरही माल वे रे । मा कुकम केसर द्धांटिया अंग रे । काई रंग रे पदमिनी प्रिय चित बाल रे ।। श्रा केसू फूलिया भूलिया जाय रे ।। काई माय रे माधव मधुकर रणझणे रे ।। मा मोगरी मन्दार मालती ना छोररे । काई कोउ रे कानन दीमे गुण घणे रे ।। १६ ।।
SR No.090103
Book TitleBhattarak Ratnakirti Evam Kumudchandra Vyaktitva Evam Kirtitva Parichay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal
PublisherMahavir Granth Academy Jaipur
Publication Year
Total Pages269
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth, Biography, & Story
File Size4 MB
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