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बारहमासा
आ तुझ बिना दीन मुख दोहिला जाये रे । काई जाये रे जूति योवन दोहिल रे॥ मा पीहर तो दीन पांच नो प्रेम रे। कोई नेम रे सासरडे सहूं सोहिलू रे ॥ १३ ॥
बोटक
साहेलू स्वामि राज साहरु माहर तो नहीं कर्म । चोर भव में भाल' मेहेत्यां बोला मोसा मम ॥ कोई तु एक मुझने एटली तां पास । करस्यु' लीला नाथ साथै कांकरीनी रास ॥ पास पूरो माहरी एटली तां खंति । प्रति घणून तारिगये जी जूयो विमासी चिन्त । पाणिग्रहण नहीं कही पछे ना कहेस्यो धर्म । काला तेटला कामणी रेए में जापयो मर्म ।। किम भन जास्ये एह माहरो क्षण वरसा सो धाय । मागशिर गयो मुझ दोहिलो रे जूयो यादब राय ।। १४ ॥
पौष मास
मा पोथें पोषन सोरंग सीयाले रे । ए शीत कालि कांपीउ परिहरो ।। प्रा शीत बाये उत्तर नो वाय रे । काये रे कंपे प्रभु मुझ परिकरो रे ।। प्राताघपडे ही मह लिही माले रे। काई डालें रे तखी जुगल थे सीरहे रे ॥ भा किस किले केलि करे सुन्दर शखारे। काई भाषा रे भावता वचन ते तां कहेरे ।। १५ ॥
भाषा कहे शाखा रहे थलि सहि अंगे शीत । प्रीत प्रोढी पखि पेखी प्राचयो जी मित मिस ।। फरयो चित माहरी ताहरी दास दयाल । बिले वले वचन ता एम कहे किम रहे राजुल पाल ।। पापो पणे नरनारि मंदिर करे सुन्दर राज । हूं नेमि विन एकनी अनुदिन किम सरे मुझ काल ।