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नेमिनाथ फाग
कां जाये बन वाहता, कला कठिन का पाय । सांभली वीनती साहरी, ताहरी कोमल काय ॥ ३८ ।। छए रति प्रारति अति घणी, वरसा लेरे विख्यात । नाथ बात नो हे सोहिली. पोहिली शियालानी रति ।। ३६ || सीयाले शीत पड़े, पर मति निर्मम हीम | हरी करी चरि मद मूके, चूके तापस नीम || ४० ।। माह उमाह अति प्रायो, महियल माधव राय ।। पंच वारण ग्रहा हामि ते, साधे मदन सहाय ।। ४१ ।। उष्ण कालि खल सरिखो, निरखो हंस कठोर । कोमल तनि लू लागस्ये, बागस्ये वायु निठोर ।। ४२ ॥
अपरांघ पाषे का परिङ्गों, दया करो देव दयाल । जलचर जल बिना टलवलें, बिलवले राजल बाल ॥ ४३ ॥ मैं जाण्युह मुझने, मिलस्ये भंगो अंगि । उलट उपनो अति घारे, रंग मां काकरो भंग ॥ ४४ ।।
हाता राजुल का नेमि से निवेदन :
भंग काकरि प्रिम भोगनो, भोगवो लोग विख्यात । माहो करग्रह करस्ये, करस्ये को जीवनो पात ॥ ४५ ॥ प्रारथी ने पाप लांग, मांगो भया करो मुझ । एक रयणी रहो पास रे, दास थाउं च तुझ ॥ ४६ ॥ हरिहर ब्रह्मा इन्द्र रे, चन्द्र नरेन्द्र न नारि परण्या दान देवता, संवता सहू संसारि ।। ४७ । सुर नर हरि हर परण्या, पधूनो न करस्यो तेणेमार | राजुस सांभन्लि वीनती, बोल्यो नेमिकुमार ।। ४८ ।। अकेका भद ने सगपण, भल पण हिंसा न होय । सुगति सुधारसढोलिय, पीये हलाहल कोय ।. ४६ ।। किहां थी पाब्यु एवडू' डाहापण देव दयाल । परण्या विश का परहरो बोले रायुल बाल ।। ५० ।। किम रह दुख एकली, किम मानें मुझ मन । रजनीपति दहे रजनीय, वासरपति दहे दन्न ।। ५१ ।।