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भट्टारक रत्नकौलि एवं कुमुदचन्द्र : व्यक्तित्व एवं कृतित्व
नेमि वंशग्य
सानो सारथि बात विख्यात भसम्भव भाज | त कोई कारण जांयों रे, ए प्रांण्या कोण काजि ।। २५ ।।
दुहा
पशु
प्रनेक |
विबेक ॥ २६ ॥३
उग्रसेन राई भाणीया पंखी गौरव वेला मारसे, करस्ये ता बात बातनी मिली, मन्तर पडियो त्रास । for संसार वीला किस्यो ए पशु नेस्यो पास ।। २७ ।।
ढाल
पास छोडाचो एहना देना कोकरो घात । जाली बात में एह तरणी विवाह वरणी नहीं बात ॥ २८ ॥ पाछो चालो र सारथि सांसो मकरस्यो सोस । उपनी तृषा अति जल वणी, न समे दूधे तथा बस ॥ २६ ॥ विषय भोगवे अग्यानी, ज्ञानो न भोगवे लेह । भूता तन्तु बांधे मक्षिका नवि बांधे करि देह ॥ ३० ॥ इन्द्रिय सुख शुभ तव लगें, मुगति न जाणो खेल । दीये स्वाद नहीं जब लगे तब लगे उत्तम तेल ।। ३१ ।। विवाह बात निवाई, भाष मदन सुध मने तप साघू, आराधु सिद्ध
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महंत |
महंत ।। ३२ ।।
दूहा आलिये धावी इम कहूँ सखीस्यों करे श्रृंगार । तोरा थी पाठो दल्यो, यदुपति नेमिकुमार ॥ ३३ ॥ सांभल श्रवणे सुन्दरी, मनि घरी एक बात । कित थई तब मति गई, कारण कहो मुझ बात ।। ३४ ।।
ढाल
राजुल का विलाप :
माल तात सह देखता, राजुल यई दिग मूढ | बात वारती सीघणी कमतरणी श्राभरण भूषण छोड़ती मोड़ती कंकण हाथ |
मन्दर
लू बहेलिया
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राखो रे रथ लम्हे समरथ लक्षग्ण कोण स सम्वना,
गति गूढ ।। ३५ ।।
लिय सहियर साथ ।। ३६ ।।
हसारप करे बहु लोक । मांहतना वचन फोक ॥ ३७ ॥
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