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नेमिनाथ फार
रामुल का सौन्धर्य
चन्द्र वदनी मृग लोचनी मोचनी संजन मीन । बासग जीत्यो वेरिणइं, श्रेणिय मधुकर दीन ॥ १२ ॥ युगस गल दीये सशि, उपमा नाशा कीर । अपर विक समता , अन्तनू निर्मल नीर ॥ १३ ॥
हाल चिबुक कमल पर षटपद, प्रानन्द करे सुषापान । ग्रीवा सुन्दर सोभती, कंजु कपोतने वान || १४ || कोमल कमल कालश वे उपरि मोती सोहे । जाण कमल केरी बेलड़ी, बेलड़ी बांहोडी सोहि ।। १५ ।। कनक कजोगम सोभतु, नाभि गम्भीर विसेस । जाणे विधाताई आगुलो वालिय रुपनी रेख ॥ १६ ।। कटि हरिगति गज जीतियां, पूरिया वनमा बास । जंघाइ जीतिय कदलिय, अंगलिय पद्म पलास ।। १७ ।। प्राभ्रण अंग पनोपम, भूषण शरीर सोहंत । कवि कहेस्यु बखाणीये राजुल रूप अनन्त ॥ १८ ॥ उग्रसेन को कुंभरि सुन्दरी सुलक्षण अंग । माधव बन्धव नेमनो, वीवाह मेलो मनरग ॥ १६ ॥
दहा नेमिनाथ का विवाह
वेह धरि सुभ पर प्रेमस्यू', अही ना मिलिया अनेक । तरचे वित्त नित चितस्यु वीहवा वारु विवेक ॥ २० ।। करी सगाई सुर मिलि यदुपति हलधर कहान । इन्द्र नरिन्द्र गयन्द चढी, ते परिण प्राध्या जनि ।। २१ ॥
हाल
जान मान माहि मोटा, महीपति मलिया अनन्त । एकेक पाहि प्रधिका षणा, ईश्वर उभया कत ।। २२ ।। देई निसारण सजाग चतुर चढियो रथ सोहि । किरिट कुण्डल केरी कानि, शंक्या रवि शशि सोहे ॥ २३ ।। प्राक्या मण्डप दुकड़ा कूकड़ा मग तणा वृन्द ।। देखी बल्यो तत खेचरे देव दयां वरणो कंद ॥ २४ ॥