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________________ मट्टारक रस्नको ति कुमुदचन्द्र : व्यक्तित्व एवं कृतित्व दिस्सी रे सिंहासन केरा राजियो रे, गाजियो यश त्रिभुवन माहि रे । वादि तिमिरहर दिनकर रे, सुरतरु सरस्वती गम्छे रे॥ अभय चन्द्र की प्रशंसा में लिखा एक और गीत देखिये जिसमें फधि ने अभयचंद्र की विद्वता एवं ज्ञान की खुल कर प्रशंसा की है प्रावो रे भामिनी गजवर गामिनी, गंदवा मभय चन्द्र मिली मृगनयनी । मुगताफलनी चाल भरीजे, गछनायक अभय चन्द्र बाबीजे ॥ २ ।। कुकुम चंदन भरीय कचोली, प्रेमे पद पूजो मारना सह भली ॥ ३ ॥ हूबड़ मंशे श्रीपाल साह तात, जनम्यो रुड़ी रतन कोरमदे मात ।। ४ ।। लघुयणे लीधो महानत भार, मन वश करी जीत्यो दुद्ध र मार ।। ५ ।। तकं नाटक प्रागम प्रहांकार, अनेक शास्त्र भण्या मनोहार ॥ ६ ॥ भट्टारक पद एहमे छाजे, जेहनी यश जगमो वास गाजे ॥ ७ ॥ श्री मूलसंघ उदयो महिमा निधान, मापक जन करे जेह गुणगान || 5 || कुमुधचन्द्र पाटि जयकारी, धर्मसागर कहे गाउ नर नारी ॥ ९ ॥ ६७. गोपालपास गोपालदास की दो छोटी रचनायें यादुरासो तथा प्रमादीगीत जयपुर के ठोलियों के मंदिर के शास्त्र भण्डार के ६७३ गुटके में संग्रहीत है। गुटके के लेखनकाल के प्राधार पर कवि १७वीं शताब्दी या इससे भी पूर्व के विद्वान रहते थे । यदुरासों में भगवान नेमिनाथ के वन चले जाने के पश्चात् राजुल की विरहावस्था का वर्णन है जो उन्हें वापिस लाने के रुप में हैं । इसमें २४ पच है। प्रमातीगीत एक उपदेशात्मकगीत है जिसमें आलस्य त्याग कर प्रात्महित करने के लिये कहा गया है। इनके अतिरिक्त इनके कुछ गीत भी मिलते हैं। ६८. पडे हेमराज प्राचीन हिन्दी गद्य पर लेखकों में हेमराज का नाम उल्लेखनीय है । इनका समय सत्रहवीं शताब्दी था तथा ये पांडे रुपचन्द के शिष्य थे। इन्होंने प्राकृत एवं संस्कृत भाषा के ग्रंथों का हिन्दी गद्य में अनुवाद करके हिन्दी के प्रचार में महत्वपूर्ण योग दिया था । इनकी प्रब तक १२ रचनायें प्राप्त हो चुकी हैं जिनमें नयच क.
SR No.090103
Book TitleBhattarak Ratnakirti Evam Kumudchandra Vyaktitva Evam Kirtitva Parichay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal
PublisherMahavir Granth Academy Jaipur
Publication Year
Total Pages269
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth, Biography, & Story
File Size4 MB
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